क्या संपत्ति बंटवारे के मामलों में मुस्लिम परिवार में जन्म लेने वाला नास्तिक व्यक्ति भी शरीयत क़ानून मानने के लिए बाध्य होगा या फिर देश का सेकुलर सामान्य सिविल कानून उस पर लागू हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केन्द्र सरकार को अपना रुख साफ करने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है. उसके बाद याचिकाकर्ता 4 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करेंगे. दोनों पक्षों का जबाव आने के बाद सुप्रीम कोर्ट 5 मई से शुरू होने वाले हफ्ते में इस मामले की सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों की पीठ सुनवाई कर रही है. केन्द्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस वाद को बेहद दिलचस्प बताया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता एक मुस्लिम महिला है, लेकिन वह अपने धर्म को नहीं मानती है और अपने संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार मांग रही है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कई धर्मों के विश्वास से जुड़ा मामला है.
कोर्ट में ये मामला दरअसल याचिकाकर्ता केरल की सफिया पीएम नाम की महिला की याचिका पर आया है. उन्होंने याचिका में मांग की है कि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद वो लोग, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते, उन पर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए. सफिया का कहना है कि वह और उनके पिता दोनों ही आस्तिक मुस्लिम नहीं हैं और इसलिए पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते, लेकिन चुंकि वो जन्म से मुस्लिम है, इसलिए शरियत क़ानून के मुताबिक उनके पिता चाहकर भी उन्हें एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति नहीं दे सकते हैं, बाकी दो तिहाई संपत्ति याचिकाकर्ता के भाई को मिलेगी.
साफिया का कहना है कि उनका भाई डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने के चलते असहाय है वो इसकी देखभाल करती है. शरीयत क़ानून के मुताबिक अगर भाई की मौत हो जाती है उसका हिस्सा पिता के भाई व दूसरे रिश्तेदारों को मिलेगा न की उसे. साफिया की अपनी एक बेटी है, पर शरीयत क़ानून के चलते वो चाहकर भी उसे पूरी संपत्ति नहीं दे सकती. साफिया की मांग है कि उसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वसीयत करने का अधिकार मिलना चाहिए कि उसकी पूरी संपत्ति उसकी बेटी को ही मिले.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)