सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) से बढ़ती ठंड के बीच दिल्ली में बेघरों के लिए आश्रयों के बारे में जानकारी मांगी है. शीर्ष अदालत ने बढ़ती ठंड को लेकर इन आश्रयों की क्षमता और अनुमानित जरूरतों का भी जिक्र हलफनामा में करने को कहा है. बता दें कि सर्वोच्च अदालत का ये निर्देश शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई करने के दौरान आया.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने पूछा कि डीयूएसआईबी से आश्रय गृहों में कितने लोगों को रखा जा सकता है, इसकी संख्या तथा ऐसी सुविधाओं की आवश्यकता वाले लोगों की अनुमानित संख्या बताने को कहा. पीठ ने कहा कि अगर उपलब्ध सुविधाओं में कोई कमी है तो डीयूएसआईबी को यह भी बताना चाहिए कि वह ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्या प्रस्ताव रखता है. इन निर्देशों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 17 दिसंबर के लिए स्थगित की है.
शीर्ष अदालत शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कई आदेश पारित किए हैं और इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताया है. उन्होंने कहा कि दिल्ली में आश्रय गृहों की कुल क्षमता केवल 17,000 व्यक्तियों की है और डीयूएसआईबी ने ऐसे नौ आश्रय गृहों को समाप्त कर दिया है.
पीठ ने डीयूएसआईबी के वकील से पूछा कि दिल्ली में आश्रय गृहों की कुल क्षमता कितनी है? वकील ने जवाब दिया कि यह संख्या लगभग 17,000 है तथा अदालत के समक्ष दायर आवेदन केवल छह अस्थायी आश्रयों से संबंधित है। डीयूएसआईबी के वकील ने कहा कि छह अस्थायी आश्रय गृह थे जो 2023 में यमुना नदी में बाढ़ के कारण नष्ट हो गए थे और जून 2023 के बाद से वहां कोई नहीं रहता.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर उस क्षेत्र के आस-पास के बेघर लोगों को गीता कॉलोनी स्थित स्थायी आश्रय गृह में स्थानांतरित किया जाता है तो आवेदक को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
डीयूएसआईबी ने कहा कि पिछली सर्दियों में दिल्ली में ठंड के कारण एक भी मौत की सूचना नहीं मिली थी. पीठ ने डीयूएसआईबी से एक हलफनामा दायर करने को कहा, जिसमें बेघर लोगों के वास्ते आवास की व्यवस्था के लिए बोर्ड के पास उपलब्ध सुविधाओं सहित अन्य विवरण शामिल हों. पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 17 दिसंबर की तारीख तय की.
सुनवाई के दौरान ने डीएसआईयूबी के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि डीयूएसआईबी के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ रिश्वतखोरी का आरोप है और इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है. पीठ ने कहा कि यह चरित्र हनन के समान है. साथ ही, इस बात पर भी गौर किया कि अधिकारी को इस मामले में आरोपी भी नहीं बनाया गया था.
पीठ ने कहा,
‘‘ये आपको कहां से पता चला? भ्रष्टाचार में लिप्त होने, आरोपी बनाए जाने जैसे बेबुनियाद आरोप लगाने से किसी की प्रतिष्ठा पर गंभीर असर पड़ता है.’’
पीठ ने डीयूएसआईबी के वकील से कहा कि वे बेघर लोगों के लिए उपलब्ध सुविधाओं के बारे में ब्योरा दें और बताएं कि क्या वे आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं. पीठ ने सुझाव दिया कि पिछले पांच-छह वर्षों के प्रामाणिक आंकड़ों का औसत लिया जाए.