सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में 23 अवैध घरों को बुलडोजर से गिराने के मामले में सख्त हिदायत दी है. कोर्ट ने कहा कि सरकार (Government) लोगों को किफायती दामों (Affordable Price) में घर देने में विफल रही हैं. सरकार की विफलता से ही ये अनाधिकृत कॉलोनियां बन रही है. कोर्ट ने इस दौरान लोगों के पास घर होने को एक मूलभूत अधिकार (Basic Rights) बताया. बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले, लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा 24 अवैध कॉलोनियों को गिराने की मिली इजाजत पर रोक लगाने की मांग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यें बातें कहीं.
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपंकर दत्ता ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की. यूपी राज्य की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल केएम नटराज कोर्ट के समक्ष हाजिर हुए. एसीजी (ASG) ने कोर्ट को बताया कि इन 24 अनाधिकृत कॉलोनियों में से 23 व्यवसायिक संपत्तियाों को ध्वस्त किया गया है.
एएसजी ने कहा,
“ये व्यावसायिक निर्माण बिना अनुमति के ही नदी तट पर अवैध रूप से बनाये गये थे. ये जानते हुए कि जमीन सरकार की है, उन्होंने इमारत गिराने के आदेश को चुनौती दी. हाईकोर्ट ने पहले ही उनकी याचिका खारिज की है. जिन 24 व्यावसायिक निर्माण के संबंध में उच्च न्यायालय ने अपना आदेश पारित किया, उनमें से 23 को पहले ही गिरा दिया गया है”
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर वकील शोएब आलम ने दलीलें दी. सीनियर वकील ने कहा कि इन व्यवासयिक निर्माण के साथ उस जगह पे रह लोगों के घरों और दुकानों को भी गिराया गया है.
संजीव खन्ना ने कहा,
“जहां तक व्यावसायिक इमारतों का सवाल है, नोटिस जारी हैं, आप आगे बढ़ सकते हैं. लेकिन, जहां तक मकानों की बात है तो आप उन्हें सात दिन का समय दीजिए.''
जस्टिस संजीव खन्ना ने स्पष्ट रूप से कहा कि क्या करने की जरूरत है और क्या किया जा रहा है इसमें स्पष्ट रूप से अंतर है. हमारी शहरीकरण में भी खामियां है, उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए बहुत ध्यान नहीं दिया है. लोगों के घर के ऊपर छत होना एक मूलभूत अधिकार है. कोर्ट ने व्यायसिक इमारतों से समान निकालने के लिए 4 मार्च तक का समय दिया है.
लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने कुकरैल नदी के किनारे बने अवैध व्यवलायिक निर्माणों को धव्स्त करने लगे. एलडीए (LDA) के अनुसार यह सरकारी जमीन है और वहां निर्माण करने से पहले किसी प्रकार की इजाजत नहीं ली गई थी. घरों को जमींदोज करने पर वहां के निवासियों ने मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये याचिकाएं खारिज कर दी है. हाईकोर्ट ने इन याचिकाकर्ताओं को दो हिस्सों में बाटां. पहला, वे जो टैक्स पेयर है. दूसरे वे जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. हाईकोर्ट ने मौजूदा हालातों में देखा कि याचिकाकर्ता और इमारतें दोनों का संंबंध गरीबी रेखा से नीचे लोगों का वास्ता नहीं था. नियमों का उल्लंघन देख याचिका खारिज की.
याचिका खारिज होने के बाद ही एलडीए ने पुन: घरों को गिराना शुरू कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने 26 फरवरी से शुरू हुए निर्माणों को गिराने की प्रक्रिया पर रोक लगाई है. वहीं, बसे झुग्गी में रह रहे लोगों के घरों को गिराने पर रोक लगाया है. साथ ही इन व्यावसायिक इमारतों को 4 मार्च से पहले गिराने से मना किया है. इस दौरान निर्माणों में रखे सामान को निकालने के निर्देश दिए है.