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अदालत को FIR रद्द करने से पहले जांच के दौरान एकत्रित सामग्री पर गौर करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक स्तर पर प्राथमिकी रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है, जांच आवश्यक है.

सुप्रीम कोर्ट

Written by My Lord Team |Published : October 15, 2024 3:21 PM IST

न्यायिक कार्यवाही से जुड़े विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेईमानी का आरोप लगाने वाली FIR को खारिज नहीं किया जा सकता है, अगर उसमें संज्ञेय अपराध का पता चलता है. अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों और एकत्र किए गए साक्ष्यों से यह निर्धारित होना चाहिए कि जांच के लिए मामला मौजूद है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता मलिक ने झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की गई थी. मलिक का आरोप है कि आरोपी ने उसका ट्रक जुलाई 2014 से रख लिया था और 12.49 लाख रुपये का किराया नहीं चुकाया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब प्राथमिकी में किसी आरोपी पर बेईमानी का आरोप लगाया जाता है और सामग्री में संज्ञेय अपराध का पता चलता है तो प्राथमिकी को रद्द करके जांच को विफल नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि किसी आपराधिक कार्यवाही या प्राथमिकी को शुरुआत में ही रद्द कर दिया जाना चाहिए या नहीं, इस पर निर्णय लेते समय जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्रियों सहित प्राथमिकी में लगाए आरोपों पर गौर किया जाना चाहिए ताकि यह तय किया जा सके कि प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ जांच के लिए मामला बनता है या नहीं. पीठ ने 14 अक्टूबर को दिए अपने फैसले में कहा कि इस प्रकार, जब प्राथमिकी में आरोपी पर बेईमान आचरण का आरोप लगाया जाता है, जिसका पता संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली सामग्रियों से चलता है तो प्राथमिकी को रद्द करके जांच को विफल नहीं किया जाना चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सोमजीत मलिक की अपील पर दिया है जिसने एक आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने के झारखंड उच्च न्यायालय के एक फरवरी के आदेश को चुनौती दी थी. मलिक ने आरोप लगाया था कि उसका ट्रक जुलाई 2014 से आरोपी के पास था लेकिन उसने 12.49 लाख रुपये के बकाये समेत उसका किराया नहीं चुकाया है. पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने 14 जुलाई 2014 और 31 मार्च 2016 के बीच मलिक के ट्रक को 33,000 रुपये के मासिक किराये पर लिया था लेकिन पहले महीने के बाद किराया नहीं चुकाया और झूठा आश्वासन देता रहा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किराया नहीं चुकाने के आरोप से ही सामान्य तौर पर यह मान लिया जाएगा कि आरोपी ने वाहन पर कब्जा बरकरार रखा है. ऐसी परिस्थितियों में उस ट्रक का क्या हुआ, यह जांच का विषय बन जाता है. यदि इसे आरोपी ने बेईमानी से खुर्द-बुर्द कर दिया था, तो यह आपराधिक विश्वासघात का मामला बन सकता है. इसलिए जांच के दौरान एकत्रित की गयी सामग्रियों पर विचार किए बिना शुरुआत में ही प्राथमिकी रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है.

अदालत ने आगे कहा कि हमारी राय में उच्च न्यायालय को प्राथमिकी रद्द करने के अनुरोध पर विचार करने से पहले जांच के दौरान एकत्रित की गयी सामग्रियों पर गौर करना चाहिए था. उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, शीर्ष अदालत ने कानून के अनुसार और जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री पर विचार करने के बाद याचिका पर नए सिरे से निर्णय लेने के लिए मामला वापस उच्च न्यायालय को भेज दिया.