नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक 15 साल पुराने केस में आरोपियों को बरी किया. कोर्ट ने अपने फैसले कहा कि केवल खून से सने हथियार के बरामद होने से अपराध साबित नहीं हो जाता है जब तक कि आरोपी मृतक की हत्या से जुड़ा नही हो. जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने यह फैसला सुनाया. वहीं, इस केस में हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के दिए गए फैसले को खारिज करते हुए कहा किसी आरोपी के दोष सिद्ध होने के लिए कोई सबूत नहीं मिल जाता, तब तक उसे दोषी करार नहीं कर सकते.
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि यह स्थापित कानून है संदेह, चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, वह सबूत की जगह नहीं ले सकता . किसी भी आरोपी को तब तक दोषी नहीं ठहरा सकते, जब तक कि उसके अपराध को सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सबूत मौजूद न हों. केस था कि आरोपी ने साल, 2009 में खंजर से वार कर एक व्यक्ति की हत्या की. फिर अन्य आरोपियों की मदद से लाश को कंबल से लपेट दिया. कार्रवाई के दौरान आरोपी के निशानदेही पर खंजर की बरामदगी की गई जिस पर मानव के खून लगे थे. केस में अभियोजन पक्ष यह सिद्ध करने में असफल रहा कि खून आरोपी के थे.
केस में सबसे पहले ट्रायल कोर्ट में कार्यवाही हुई. कोर्ट ने आरोपी को इस आधार पर दोषी पाया कि घटनास्थल से ऐसे समान मिले हैं जो आरोपी के थे. इसके बाद हाईकोर्ट में जब आरोपी से सीआरपीसी (CRPC) की धारा 313 के तहत इस विषय पर स्पष्टीकरण मांगा गया, तो वह जबाव देने में असफल रहा. हाईकोर्ट ने आरोपी के समान घटनास्थल पर मौजूद होने एवं एफएसएल रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए आरोपी को दोषी करार दिया था. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एफएसएल रिपोर्ट खारिज करते हुए आरोपियों को बरी कर दिया.
CRPC की धारा 313
सीआरपीसी (CRPC) की धारा 313 के तहत आरोपी की जांच करने की शक्ति से संबंधित है. यह धारा ट्रायल कोर्ट को आरोपी से मुकदमे से जुड़े किसी भी स्तर पर प्रश्न पूछने की शक्ति देती है, जिससे आरोपी अपने विरुद्ध साक्ष्य में मौजूद होने वाली किन्हीं भी परिस्थितियों को स्पष्ट व सही तरीके से बता सके.