सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के एक फैसले पर रोक लगाया, जिसमें बीसीआई (BCI) ने एक वकील पर 50,000 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 'कठोर' बताते हुए वकील को राहत दी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने इसमें सुनवाई की. अपने फैसले में कोर्ट ने बीसीआई (BCI) के उस आदेश पर रोक लगाया जिसमें अपीलकर्ता वकील पर 50,000 का जुर्माना लगाया गया और ऐसा करने में असफल रहने पर उसके लाइसेंस को छह महीने के लिए निलंबित करने की बात कही गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बीसीआई (BCI)अनुशासनात्मक समिति ने शिकायत खारिज करते हुए अपीलकर्ता पर 50,000 रूपये का जुर्माना लगाया है. जुर्माने के साथ एक बहुत कठोर आदेश दिया कि यदि जुर्माने का भुगतान नहीं किया गया तो अपीलकर्ता का लाइसेंस छह महीने के लिए निलंबित कर दिया जाएगा. हम आदेश के उस हिस्से पर रोक लगाते हैं, जहां जुर्माने और जुर्माना न जमा कर पाने का प्रावधान है.
मामला है कि एक वकील (बहन) ने बीसीआई के सामने दूसरे वकील ( अपने सगे भाई) के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. साफ शब्दों में, दोनो वकील आपस में भाई-बहन है और बहन ने अपने भाई के खिलाफ बीसीआई (BCI) के समक्ष आपत्तिजनक भाषा में ईमेल भेजने का आरोप लगाया है. मामले में कार्रवाई के दौरान बीसीआई को आरोपी वकील के खिलाफ शिकायत अस्पष्ट लगे जिसके चलते अनुशासनात्मक समिति द्वारा शिकायतकर्ता 'वकील' पर ही 50,000 हजार का जुर्माना लगाया. अपने फैसले में बीसीआई ने आगे निर्देश देते हुए कहा कि ऐसा करने में अगर शिकायतकर्ता असफल रहता है, तो उसका लाइसेंस छह महीने के लिए निलंबित किया जाएगा. इस फैसले के खिलाफ शिकायतकर्ता 'वकील' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
बीसीआई (BCI) की अनुशासन समिति ने 02.11.2023 के दिन मिले शिकायत को अस्पष्ट और एजवोकेट एक्ट, 1961 के तहत सुनवाई योग्य नहीं माना. वहीं, बीसीआई (BCI) ने शिकायतकर्ता को महाराष्ट्र और गोआ बार काउंसिल के कल्याण कोष में 50,001 रूपये जमा करने का आदेश दिया था.