सुप्रीम कोर्ट दहेज उत्पीड़न मामले में झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील सुनवाई कर रहा है. जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता योगेश्वर साव ने अपने पत्नी और बेटियों की देखभाल करने की जगह उनकी अनदेखी करने को लेकर जमकर फटकारा है. सुप्रीम कोर्ट ने योगेश्वर साओ की बेटियों की उपेक्षा और पत्नी के प्रति दुर्व्यवहार के लिए कड़ी टिप्पणी की, यह कहते हुए कि ऐसे निर्दयी व्यक्ति को कोर्ट में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती. बता दें कि योगेश्वर साओ को 2015 में दहेज उत्पीड़न के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें दो साल छह महीने की सजा सुनाई गई थी. इसी मामले में उसने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने उससे क्या कहा और पूरा मामला क्या है....
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह और जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ याचिकाकर्ता (पति) के दहेज उत्पीड़न मामले में सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी.
अदालत ने कहा,
"आप किस तरह के आदमी हैं जो अपनी बेटियों की भी परवाह नहीं करते?"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब वह घर में लक्ष्मी, सरस्वती पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन बेटियों की उपेक्षा करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अपीलकर्ता को किसी तरह राहत तभी दी जाएगी, जब वह अदालत को आश्वासन दे कि अपनी पत्नी और बेटियों को भरण-पोषण भत्ता या कृषक भूमि में हिस्सेदारी देगा.
दहेज उत्पीड़न के इस मामले में, दंपत्ति की शादी 2003 में हुई और उनकी दो बेटियां है. 2009 में पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया. उसने दावा किया कि पति ने अलग रहने के बावजूद 50000 रूपये की मांगे और अपनी बेटियों की हमेशा उपेक्षा करते रहे. उन्होंने दूसरी शादी की और उसका गर्भाश्य भी ऑपरेशन करके निकलवा दिया है.
ट्रायल कोर्ट ने योगेश्वर साव (अपीलकर्ता) को दहेज उत्पीड़न मामले में दोषी पाया. ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी सेक्शन 498ए के तहत क्रूरता का दोषी पाते हुए ढ़ाई साल जेल और 5,000 रूपये का जुर्माना लगाया. इसके अलावे पहली पत्नी ने भरण पोषण के लिए भी याचिका की, जिसमें अदालत ने व्यक्ति को पत्नी दो हजार रूपये और दोनों बेटियों को एक हजार रूपये महीना देने के निर्देश दिए.
व्यक्ति फैसले को चुनौती देते हुए झारखंड हाई कोर्ट पहुंचा. हाई कोर्ट ने गर्भाश्य हटाने (Uterus Removal) और दूसरी शादी के आरोप के साक्ष्य नहीं पाते हुए खारिज कर दिया. वही, सजा को दो साल जेल की सजा को डेढ़ साल में तब्दील करते हुए जुर्माने की राशि को बढ़ाकर एक लाख रूपये कर दिया. अब योगेश्वर साव ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने किसी प्रकार का राहत देने से पहले बेटियों की भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठाने को कहा है
(खबर IANS इनपुट पर आधारित)