सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में हाल ही में बने, निर्माणाधीन और पुराने सभी पुलों के संरचनात्मक ऑडिट की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) की जांच करने पर सहमति जताई.
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोटिस जारी करते हुए बिहार के सड़क निर्माण और ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से मामले में जवाब मांगा है.
जनहित याचिका में बिहार सरकार को सभी मौजूदा और निर्माणाधीन पुलों की निरंतर निगरानी और सभी मौजूदा पुलों की स्थिति पर एक व्यापक डेटाबेस बनाए रखने के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञों वाली एक स्थायी संस्था स्थापित करने के निर्देश देने की मांग की गई है. वकील ब्रजेश सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत को तत्काल विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि पिछले दो वर्षों के भीतर बिहार में तीन बड़े निर्माणाधीन पुल और पुल ढहने की कई अन्य घटनाएं हुई हैं.
IANS की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में कहा गया है,
"बिहार में पुलों के लगातार गिरने से यह स्पष्ट है कि कोई सबक नहीं सीखा गया है और पुलों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. इन नियमित घटनाओं को महज दुर्घटना नहीं कहा जा सकता, ये मानव निर्मित आपदाएं है."
याचिका में कहा गया है कि बिहार भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है, जिसका कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 68,800 वर्ग किलोमीटर है, जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत है. इसलिए, बिहार में पुलों के गिरने की ऐसी नियमित घटनाएं अधिक विनाशकारी हैं और इसलिए लोगों की जान बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. याचिका में बिहार सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा विकसित किए गए समान अनुरूपता पर निर्मित और निर्माणाधीन पुलों की वास्तविक समय निगरानी के लिए उचित नीति या तंत्र बनाए.