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विदेशों से MBBS पढ़े छात्रों को मिले स्टाइपेंड; याचिका पर Supreme Court ने लिया संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट में विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट (FMG) इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड की मांग करते हुए याचिका दायर की. जिसमें कहा गया कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकारी मेडिकल कॉलेज, विदिशा में इंटर्नशिप कर रहे छात्रों को जून, 2023 से स्टाइपेंड नहीं मिला है.

Supreme Court of India

Written by My Lord Team |Published : January 23, 2024 5:31 PM IST

विदेशों से एमबीबीएस (MBBS)की पढ़ाई करने वालों छात्रों के लिए जल्द ही बड़ा फैसला आ सकता है. जिससे उनके इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट (FMG) द्वारा स्टाइपेंड नहीं मिलने वाल रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है.

FMG छात्रों ने की स्टाइपेंड देने की मांग

जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट के स्टाइपेंड भुगचान से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की. यह याचिका अटल बिहारी वाजपेयी सरकारी मेडिकल कॉलेज, विदिशा में इंटर्नशिप कर रहे छात्रों के द्वारा द्वारा दायर किया गया.

याचिका में छात्रों ने दावा किया कि 69 छात्रों वाले बैच को दो महीने के लिए केवल 12760 रूपये स्टाइपेंड के तौर पर मिले. और जून, 2023 से उन्हें स्टाइपेंड नहीं मिला.

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इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड मिले

अपने याचिका में एफएमजी छात्रों ने मामले से संबंधित अन्य मामलों को भी संलग्न किया है. जिसमें अभिषेक यादव और अन्य बनाम मेडिकल कॉलेज और अन्य का मामला शामिल है. इस मामले में कहा गया कि 70 % मेडिकल कॉलेज इंटर्नशिप करने वाले एमबीबीएस के छात्रों को स्टाइपेंड नहीं देते, या न्यूनतम तय स्टाइपेंड नहीं दे रहे हैं. वहीं, मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेस को एक साल की अनिवार्य इंटर्नशिप करे वाले छात्रों को स्टाइपेंड (25000 रूपये) देने का आदेश दिया.

छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का जिक्र किया. जिसमें कोर्ट ने इंटर्नशिप के दौरान छात्रों को स्टाइपेंड नहीं देने की स्थिति की तुलना 'बंधुआ मजदूरी' से की थी.

FMG छात्रों को भी मिले समान स्टाइपेंड

याचिकाकर्ताओं ने कहा, छात्र ने स्टाइपेंड की समस्या कई अधिकारियों के समक्ष रखा, लेकिन अब तक कोई उचित हल नहीं निकला. याचिका में कहा कि छात्रों को इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड नहीं देना गैर-न्यायसंगत है, क्योंकि यह स्टाइपेंड पाने वालों की तुलना में भेदभाव की स्थिति उत्पन्न करता है.