नयी दिल्ली: एक तथ्यान्वेषी मिशन के तहत हिंसाग्रस्त मणिपुर राज्य का दौरा करने वाली एक महिला वकील को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में राहत मिल गई। शीर्ष अदालत ने उक्त महिला को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया है। राज्य की पुलिस ने महिला के खिलाफ गंभीर धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील दीक्षा द्विवेदी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे की दलीलों पर गौर किया और उन्हें गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करते हुए आगे की सुनवाई के वास्ते उनकी याचिका को इस शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध किया।
पीठ ने दवे से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सहायता करने वाले वकील को याचिका की एक प्रति प्रदान करने के लिए कहा। मेहता राज्य में जातीय हिंसा से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई में मणिपुर सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। द्विवेदी महिला वकीलों के संघ, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी दल का हिस्सा थीं।
समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, मणिपुर हिंसा के मद्देनजर महिला वकील तथ्यान्वेषी मिशन पर हिंसाग्रस्त राज्य गईं थी और राज्य पुलिस ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के अपराध सहित विभिन्न दंडात्मक प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
मणिपुर में संघर्षरत जातीय समूहों को अदालती कार्यवाही के दौरान संयम बरतने का सुझाव देते हुए उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा था कि राज्य में हिंसा बढ़ाने के लिए मंच के रूप में शीर्ष अदालत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं। तब से अब तक कम से कम 150 लोगों की जान जा चुकी है।
बता दें कि मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है।