नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्राचीन, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों के ‘‘मूल’’ नाम फिर से रखने के लिए ‘‘पुनर्नामकरण आयोग’’ गठित करने संबंधी अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका को खारिज कर दिया. उपाध्याय की याचिका में मांग की गई थी कि सरकार 'पुनः नामकरण आयोग' बनाये, जो हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक विरासत वाले जगहों के असली नाम का पता लगाएं.
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका के मकसद पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह उन मुद्दों को जीवंत करेगा, जो "देश को उबाल पर रखेंगे." जनहित याचिका में बेगूसराय, बिहार शरीफ, दरभंगा, हाजीपुर, जमालपुर, अहमदाबाद, होशंगाबाद, गाज़ियाबाद, फिरोजाबाद, फरीदाबाद, गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, मुजफ्फरपुर जैसी जगहों का हवाला दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने ‘पुनर्नामकरण आयोग’ गठिन करने का मकसद पूछते हुए कहा कि यह मुद्दों को जीवंत रखेगा, जिससे देश में तनाव बना रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कोई देश, उसकी वर्तमान पीढ़ी अतीत का गुलाम नहीं बनी रह सकती. देश को आगे बढ़ना है. इस तरह के मसले देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए ठीक नहीं है."
"हिंदुत्व कोई मजहब नहीं है, बल्कि जीवन जीने का तरीका है. हिंदुत्व एक ऐसा विचार है, जिसने सबको स्वीकारा है- आक्रमणकारियों को भी. अतीत के ऐसे मसलो को मत कुरेदिये जो समाज में अशांति पैदा कर दे. ऐसे मसलों को हमेशा जिंदा नहीं रखा जा सकता," सुप्रीम कोर्ट ने कहा.
इस महीने की शुरुआत में, उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा "नाम बदलने" वाले प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के "मूल" नामों को बहाल करने के लिए केंद्र को एक 'नामकरण आयोग' गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
याचिका में कहा गया है कि हाल ही में मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया गया था, लेकिन सरकार ने आक्रमणकारियों के नाम पर सड़कों का नाम बदलने के लिए कुछ नहीं किया और कहा कि इन नामों को जारी रखना संविधान के तहत गारंटीकृत संप्रभुता और अन्य नागरिक अधिकारों के खिलाफ है.