नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी जी कृष्णैया की 1994 में हुई हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े सारे दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए है. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अगस्त में निर्धारित की है.
न्यूज़ एजेंसी भाषा के अनुसार, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील मनीष कुमार से कहा कि मामले में आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा, और उन्हें आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े सारे दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए. प्रारंभ में कुमार ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए कुछ वक्त की मोहलत मांगी थीं.
पीठ ने जी कृष्णैया की पत्नी की, आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका को आठ अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, जो कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पैरवी कर रहे हैं, ने कहा कि राज्य सरकार ने पश्चगामी ढंग से नीति में बदलाव किया और आनंद मोहन को रिहा कर दिया.
लूथरा ने पीठ से अनुरोध किया कि वह राज्य को आनंद मोहन के सभी पिछले आपराधिक रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दे, और मामले की सुनवाई अगस्त में हो.
याचिका में यह भी कहा गया है कि मोहन राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति है और उसने खुद सांसद रहते हुए सेवारत आईएएस अधिकारी जी कृष्णया की हत्या की है. उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है और उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित हैं.
गौरतलब है कि कृष्णैया तेलंगाना से थे और 1994 में भीड़ ने उन्हें तब पीट-पीट कर मार डाला था जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शव यात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी। आनंद मोहन उस वक्त विधायक थे और शव यात्रा की अगुवाई कर रहे थे.
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की करीब तीन दशक पहले हुई हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को बिहार की सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया.
गैंगस्टर से नेता बने मोहन की रिहाई ‘जेल सजा छूट आदेश’ के तहत हुई है. हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था, जिससे मोहन समेत 27 अभियुक्तों की समयपूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ.
अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था.
मोहन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. नीतीश सरकार द्वारा 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था और उस उपबंध को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘ड्यूटी पर कार्यरत लोकसेवक की हत्या’ के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती.