हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामलो में सुलह को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अदालतों को निर्देश दिया है कि अगर चेक बाउंस से संबंधित मामले में दोनों पक्षों में रजामंदी की संभवना है तो दोनों सुलह करा देनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामलों की बढ़ती संख्याओं को देखते हुए ये ऐसा कहा है. अदालत ने लंबित मामलों की संख्या से चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हमें चेक बाउंस के मामले में सजा की जगह सुलह पर विचार करने की जरूरत है. सर्वोच्च न्यायालय ने ये बातें मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले के विरुद्ध दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करने के दौरान कही, जिसमें "अपर्याप्त निधि" के चलते चेक बाउंस मामले में अपीलकर्ताओं को एनआई अधिनियम (Negotiable Instruments Act) के तहत दोषी ठहराया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस मामले से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान उक्त बातें कहीं. इस मामले में आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (NI Act) की धारा 138 के तहत एक साल जेल की सजा सुनाई थी. इस मामले के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित रहने के दौरान जनवरी 2024 में दोनों पक्षों ने मामले को आपस में सुलझा लिया था. उक्त घटनाक्रम से जब सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया गया तो उन्होंने मामले के निपटारे को स्वीकृति दे दी.
अदालत ने कहा,
"अब, जब दोनों पक्षों ने कानून द्वारा स्वीकार्य समझौता कर चुके हैं और इस न्यायालय ने भी समझौते की वास्तविकता के बारे में खुद को संतुष्ट कर लिया है, तो हमें लगता है कि अपीलकर्ताओं की सजा से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और इसलिए, इसे रद्द करने की आवश्यकता है,"
दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते को कानून सम्मत पाकर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को समाप्त करने की इजाजत दे दी. फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में अदालत की भूमिका पर गौर करते हुए कहा कि
"चेक के अनादर से जुड़े बड़ी संख्या में मामले न्यायालयों में लंबित हैं, जो हमारी न्यायिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है. यह ध्यान में रखते हुए कि उपाय के 'प्रतिपूरक पहलू' को 'दंडात्मक पहलू' पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए, अदालतों को एनआई अधिनियम के तहत अपराधों के सुलह को प्रोत्साहित करना चाहिए, यदि पक्षकार ऐसा करने के इच्छुक हैं."
अदालत ने आगे बताया कि चेक का अनादर एक विनियामक अपराध है, जिसे केवल सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए अपराध बनाया गया था ताकि इसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके. सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया, परिस्थितियों की समग्रता और पक्षों के बीच समझौते पर विचार करते हुए, उन्होंने अपील को अनुमति दी और मद्रास उच्च न्यायालय और निचली अदालत के विवादित आदेशों को रद्द करते हुए अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘राज रेड्डी कल्लम बनाम हरियाणा राज्य’ मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एनआई अधिनियम के तहत दोषसिद्धि को रद्द किया था, भले ही शिकायतकर्ता ने समझौता करने के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया था, यह देखते हुए कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को पर्याप्त मुआवजा दिया था.