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Simplified: क्या सरकार आपकी निजी संपत्ति लेकर दूसरों में बांट सकती है? जानिए Supreme Court ने क्या कुछ कहा

क्या आपकी निजी संपत्ति को लेकर सरकार दूसरों को दे सकती है. क्या निजी संपत्ति को संविधान के 39(बी) के तहत 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का अंग माना जा सकता है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.

Written by My Lord Team |Published : April 26, 2024 9:02 AM IST

Supreme Court On Wealth Distribution: क्या आपकी निजी संपत्ति को लेकर सरकार दूसरों को दे सकती है. क्या निजी संपत्ति को संविधान के 39(बी) के तहत 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का अंग माना जा सकता है या नहीं? निजी संपत्ति के ऊपर राज्य का कितने हद तक अधिकार है? सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच इस मामले पर विचार कर रही है. सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, कि सामुदायिक संसाधनों और निजी संपत्ति के बीच में स्पष्ट अंतर होना चाहिए. सीजेआई ने ये स्पष्ट कहा, सामुदायिक संपत्तियों में प्राकृतिक संसाधन शामिल होंगे. उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि यह नहीं कह सकते कि अनुच्छेद 39(बी) जल, जंगल और खदान जैसी प्राइवेट संपत्तियों पर लागू नहीं होता. लेकिन इसे किसी व्यक्ति की प्राइवेट संपत्ति को बांटने के स्तर तक ले जाने से बचना चाहिए.

अब नौ जजों की बेंच कर रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. नौ जजों की बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, बी वी नागरत्ना, एस धूलिया, जे बी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल है.

SC के सामने जो केस आया है, वह महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 (MHADA) में 1986 के संसोधन को मुंबई में 'अधिग्रहित' संपत्तियों के मालिकों की चुनौती से सामने आया है. 1976 में MHADA को बनाया गया. कानून के अंतर्गत मुंबई की जर्जर इमारतों में रहने वाले से सेस वसूलने के लिए लाया गया था. सरकार सेस के पैसो से इन इमारतों का मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए किया जाना था.

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कानून में संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के आधार पर धारा I-A जोड़ी गई, जिसके अनुसार राज्य जमीनों और इमारतों का अधिग्रहण कर उन्हें जरूरतमंद लोगों को देगी. आगे चलकर कानून में संशोधन हुआ. कानून में धारा VIII-A लागू हुआ जिसके अनुसार सरकार सेस लगाने वाली इमारतों को भी अधिग्रहित कर सकती है, अगर इन इमारतों में रहने वाले 70% लोग इसकी इजाजत दे दे.

महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले को प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने MHADA की धारा VIII-8A को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी. चुनौती में हाईकोर्ट से कहा कि धारा VIII-A से अनुच्छेद-14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है. याचिकार्ताओं को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिली है. प्रॉपर्टी एसोसिएशन दिसंबर, 1992 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) को आधार बनाते हुए ये विचार कर रही है कि 'समुदायों के भौतिक संसाधनों' में निजी संसाधन शामिल है या नहीं! इसमें सेस वाली इमारतें भी शामिल है.

इस मामले को सबसे पहले मार्च, 2021 में पांच जजों की बेंच ने सुना. उन्होंने इसे फरवरी, 2002 सात जजों की बेंच के पास भेज दिया. अब सात जजों की बेंच ने इस मामले को नौ जजों की बेंच के पास भेज दिया है.

संविधान के अनुच्छेद 39(बी) में क्या है?

संविधान का पार्ट IV नीति निदेशक तत्व से जुड़ा है. अनुच्छेद 39(बी) इसी के अंतर्गत आता है. अनुच्छेद के अनुसार, यह राज्य का दायित्व है कि वे ऐसी नीति बनाए जिससे 'समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण' का वितरण ऐसे किया जाए जो आम लोगों के नजरिए से सर्वोत्तम हो.

1977 से अब तक, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या कई बार की है. साल 1977 में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी मामले में 4:3 से फैसला सुनाया कि निजी प्रोपर्टी 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' के दायरे में नहीं आते हैं. सात जजों की बेंच में जस्टिस अय्यर भी थे, जिन्होंने प्राइवेट प्रोपर्टी को समुदाय के भौतिक संसाधनों में रखे जाने पर जोड़ दिया था.

साल, 1983 में जस्टिस अय्यर की व्याख्या को सहमति मिली जब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने संजीव मैन्यफैक्टचरिंग कंपनी बनाम भारत सरकार मामले में फैसला सुनाया था. साल, 1996 में मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ मामले में जस्टिस अय्यर की व्याख्या के आधार पर ही फैसला सुनाया गया.

हालांकि, इस सुनवाई में सीजेआई ने स्पष्ट किया है कि हमें जस्टिस अय्यर की मार्क्सवादी दृष्टिकोण तक जाने की जरूरत नहीं है. बेंच ने स्पष्ट किया कि नीति निदेशक तत्व का अर्थ 'समाजिक बदलाव की भावना' लाना है और ये कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की 'निजी संपत्ति को समुदाय का भौतिक संसाधन' नहीं माना जा सकता है. साथ ही राज्य द्वारा 'सार्वजनिक भलाई' के लिए उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता है.