नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मानवीय पहलू की एक झलक दिखी जब शीर्ष न्यायालय ने कहा कि महामारी और सामान्य समय में शवों का गरिमापूर्ण तरीके से अंत्येष्टि के लिए एक समान राष्ट्रीय प्रोटोकॉल की आवश्यकता है.
न्यूज़ एजेंसी भाषा के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने एक वकील की पीड़ा को साझा करते हुए यह बात कही. उच्चतम अदालत ने यह टिप्पणी एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए बृहस्पतिवार को कही.
सम्बंधित वकील ने पीठ को बताया कि उनका मुवक्किल न तो अपनी दिवंगत मां का चेहरा देख सका था और न ही महामारी के दौरान उसका अंतिम संस्कार कर सका था, जबकि कोविड-19 के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई थी.
पीठ ने कहा, ‘‘हम आपकी पीड़ा को दूर नहीं कर सकते हैं, लेकिन हम इसे दूसरों के लिए बेहतर बनाने का प्रयास कर सकते हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से शवों का गरिमापूर्ण तरीके से अंतिम संस्कार करने संबंधी मौजूदा राष्ट्रीय नीति की प्रति को वकील के साथ साझा करने को कहा .
भाषा के अनुसार, पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर राष्ट्रीय नीति का अध्ययन करेगा और उनके (वकील) सुझावों को मांगेगा और फिर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से सभी राज्यों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए कहेगा कि एक समान प्रोटोकॉल हो.
पीठ ने कहा, ‘‘इस पर एक समान राष्ट्रीय नीति की जरूरत है,’’ और मामले की अगली सुनवाई को अगस्त में सूचीबद्ध कर दिया.