सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (31 जनवरी, 2024) के दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक स्टेटस (Minority Status) से जुड़े मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान होने में हर्ज क्या है? केन्द्र ने जबाव में कहा कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का अल्पसंख्यक स्टेटस होने से ये समाज के कई वर्गों की पहुंच से बाहर हो जाएगा. साथ ही राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का एक राष्ट्रीय ढ़ांचा होना चाहिए.
बता दें कि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक स्टेटस से जुड़े मामले की सुनवाई सात ( 7) जजों की बेंच कर रही है. इन सात जजों के बेंच के प्रमुख सीजेआई डीवीई चंद्रचूड़ हैं. मामले के दौरान सीजेआई ने एएमयू संस्थान का पक्ष रख रहे वकील से पूछा कि क्या सांप्रदायिक चरित्र राष्ट्रीय महत्व के संस्थान की स्थिति को कमजोर कर देगा. प्रत्युत्तर में एएमयू का पक्ष रख रहे सीनियर एडवोकेट डॉ राजीव धवन ने पूछा, कि जब किसी संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित करने के बाद उसे सांप्रदायिक संस्थान कहना उसके महत्व को कम करने जैसा होगा. जबकि कोर्ट को देखना चाहिए कि राष्ट्रीय महत्व के होने और इसके अल्पसंख्यक चरित्र होने के बीच कोई अंर्तविरोध नहीं है.
संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 63 के अंतर्गत, देश के महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित किया है जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU), बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU), दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) आदि जैसे संस्थान शामिल है.
एएमयू और इसके अल्पसंख्यक स्टेटस होने को लेकर पुराना विवाद है.
साल, 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ केस में इस पर चर्चा हुई जिसमें पांच (5) जजों की बेंच यह फैसला दिया था कि एएमयू एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जिसके चलते इसे अल्पसंख्यक स्टेटस नहीं दिया जा सकता. वहीं, साल, 1981 में जब संसद में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित होने से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को इसका अल्पसंख्यक स्टेटस वापस मिल गया. जब साल 2006 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इस पर साल, 2019 में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के तीन(3) जजों की बेंच के पास सुनवाई के लिए लाया गया. बेंच ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के सात (7) जजों की बेंच के पास भेज दिया. इन सात जजों की बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस एस सी. शर्मा है. अलीगढ़ अल्पसंख्यक स्टेटस मामले में एक मुद्दा है कि एक विश्वविद्यालय, जो राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है, अपने लिए अल्पसंख्यक स्टेटस का दावा कर सकता है.