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रोहिंग्या बच्चे पब्लिक स्कूल में पात्रता साबित कर ले सकते हैं एडमिशन, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष राहत देने से इंकार कर केन्द्र सरकार को भी चेताया

सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि उन्हें पहले संबंधित सरकारी स्कूलों से संपर्क करना चाहिए. अदालत ने स्पष्ट किया कि रोहिंग्या बच्चों के प्रवेश को लेकर कोई सर्कुलर नहीं है और यह मामला सरकार के नीतिगत निर्णय का है.

Rohingyas Muslims, Supreme court

Written by My Lord Team |Published : February 18, 2025 1:11 PM IST

रोहिंग्या बर्मा, म्यांनमार और बंग्लादेश से भागकर भारत में आए है. वह देश में अवैध प्रवासी की तरह रह रहे हैं. इन्होंने भारत में प्रतिबंधित रास्तों से घुसपैठ की है. रोहिंग्या की ओर से सुप्रीम कोर्ट में लगातार कई याचिकाएं आती रहती है. इससे पहले, उन्होंने चुनाव के दौरान अपने खिलाफ द्वेष भड़काने से जुड़े पोस्ट, सोशल मीडिया वीडियो पर रोक लगाने की मांग की थी. उस वक्त ने सुप्रीम कोर्ट ने राहत के तौर पर संबंधित प्राधिकरियों के पास जाने के निर्देश दिए थे. अब रोहिंग्या ने सुप्रीम कोर्ट से केन्द्र व दिल्ली सरकार की ओर से संचालित स्कूल और अस्पताल में भर्ती देने का हक देने की मांग की है. आइये जानते हैं कि इस मामले में क्या हुआ...

पात्रता साबित करने पर रोहिंग्या छात्रो को एडमिशन

आज सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह ने रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों के दिल्ली स्कूलों में एडमिशन के लिए दायर याचिका को निपटा दिया. अदालत ने कहा कि बच्चों को पहले संबंधित सरकारी स्कूलों से संपर्क करना चाहिए, जहां वे प्रवेश के लिए पात्रता का दावा कर रहे हैं. यदि उन्हें प्रवेश से वंचित किया जाता है, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

अदालत ने कहा, "इस संबंध में कोई सर्कुलर नहीं है जो यह कहता हो कि रोहिंग्या बच्चों का प्रवेश बैन है."

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित है, जिसमें "सुरक्षा और नागरिकता" के विषय शामिल हैं. अदालत ने यह भी कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है जिसे सरकार को लेना चाहिए. अदालत ने स्पष्ट किया कि कोई भी कोर्ट यह तय नहीं कर सकता कि किसे नागरिकता दी जाए, इस मामले में भारत सरकार को इस मामले में निर्णय लेने दीजिए.

इससे पहले याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम से अनुरोध किया गया था कि वे म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को उनके निवास के निकट स्कूलों में प्रवेश दें. यह दावा किया गया था कि दिल्ली सरकार और एमसीडी इन बच्चों को आधार कार्ड की कमी के कारण प्रवेश नहीं दे रहे हैं.

SC ने घरों की जानकारी मांगी

पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए स्कूल में दाखिले और सरकारी सुविधाओं की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान उनकी निवास जानकारी मांगी थी. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने कहा कि रोहिंग्या बच्चों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में कोई भेदभाव नहीं होगा.

जस्टिस कांत ने कहा, "हमें यह जानने की आवश्यकता है कि वे कहां रह रहे हैं, किसके घर में रह रहे हैं और उनका घर नंबर क्या है." 

वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थियों के पास संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त शरणार्थियों (UNHCR -United Nations High Commissioner for Refugees) कार्ड हैं. उन्होंने शीर्ष अदालत से निवास की जानकारी प्रदान करने के लिए कुछ समय मांगा.

रोहिंग्या के एनजीओ ने दायर की याचिका

एक एनजीओ रोहिंग्या ह्मून राइट्स इनिसिएटिव (Rohingya Human Rights Initiative) द्वारा जनहित याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी रोहिंग्या बच्चों को बिना आधार कार्ड के मुफ्त में स्कूल में दाखिला दिया जाए और उन्हें सभी परीक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए. इसके अलावा, याचिका में रोहिंग्या परिवारों को अन्य नागरिकों के समान सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं, सब्सिडी वाले खाद्यान्न और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभ देने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब तक शरणार्थियों के निवास की पुष्टि नहीं होती, तब तक वे राहत का विस्तार नहीं कर सकते.