Sultanpur Encounter: उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत ज्वैलर्स डकैती मामले में आरोपी और एक लाख रुपये के इनामी गैंगस्टर मंगेश यादव के एनकाउंटर की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं (UP Government Ordered Magisterial Investigation In Sultanpur Encounter). पुलिस मुठभेड़ या एनकाउंटर को लेकर लोग तरह-तरह के सवाल उठा रहे हैं. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने पहले इस एनकाउंटर को फर्जी बताया था और एक्स पर एक पोस्ट में सरकार पर हमला करते हुए कहा कि दो दिन पहले उसे उठाकर एनकाउंटर के नाम पर गोली मार दी गई. अब उसकी मेडिकल रिपोर्ट बदलने का दबाव बनाया जा रहा है. सबूत नष्ट होने से पहले सुप्रीम कोर्ट को इस गंभीर प्रशासनिक अपराध का तुरंत संज्ञान लेना चाहिए. ऐसे में सवाल उठता कि अगर मजिस्ट्रेट जांच के आदेश किन हालात में दिए जाते हैं, एनकाउंटर गलत साबित होने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ क्या मामला चलाया जाएगा? आदि-आदि
मजिस्ट्रियल जांच को मजिस्ट्रेट जांच भी कहते हैं. एक मजिस्ट्रेट द्वारा किसी विशिष्ट घटना, दुर्घटना या शिकायत की जांच की जाती है. इसका उद्देश्य तथ्य एकत्र करना, घटना के कारणों को निर्धारित करना और सिफारिशें देना है. भारत में अक्सर इसका उपयोग हिरासत में हुई मौतों, पुलिस मुठभेड़ों या एनकाउंटर और दंगों जैसी घटनाओं की जांच के लिए किया जाता है (Magisterial Probe In Custodial Death, Encounter or Riots). बता दें कि मजिस्ट्रेट एक न्यायिक अधिकारी होता है, जिसके पास 'ट्रायल या सेशन कोर्ट में सुनवाई करने और फैसला सुनाने की शक्ति होती है.
पुलिस को किसी को भी जान से मारने के अधिकार नहीं है. साथ ही सेल्फ डिफेंस के दौरान अगर आरोपी को चोट पहुंचती है तो पुलिस के खिलाफ कोई मामला नहीं बनेगा. कानून किसी व्यक्ति के जीवन को लेकर कितनी सजग है उसका पता इस बात से चल सकता है कि सीआरपीसी में तो पुलिस के पास हथकड़ी लगाने के भी अधिकार नहीं थे. विशिष्ट परिस्थतियों में पुलिस आरोपी के भागने या खींचातानी होने के स्थिति में हथकड़ी लगा सकती थी. नए कानून में पुलिस को हथकड़ी लगाने की वैधानिक शक्ति दे दी गई है. अब एनकाउंटर को लोग त्वरित न्याय से जोड़कर देखते हैं, अक्सर जघन्य रेप मामलों में इसकी मांग देखने-सुनने को मिलती है. एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोनों से अपने-अपने गाइडलाइन जारी किए हैं.
संविधान की आर्टिकल 21. जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार. दुर्दांत अपराधियों के मामले में भी केन्द्र, राज्य व पुलिस को उनकी जीवन की सुरक्षा करने का अधिकार है. आर्टिकल 21 एक्सट्रा ज्यूडिशियल किलिंग व एनकाउंटर को अवैध घोषित करती है.
अगर मजिस्ट्रेट जांच में अगर इस बात का पता चलता है कि एनकाउंकर गलत या फेक है तो आरोपी पुलिस अधिकारी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) का मामला चलेगा. साथ ही आरोपी के परिवार को सरकार की ओर से मुआवजा भी दिया जाएगा.