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धर्मांतरण के बाद भी सामाजिक कलंक बना रह सकता है, एक के बाद एक कमीशन का क्या औचित्य है? Supreme Court

Supreme Court ने केन्द्र द्वारा गठित 3 सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने से इंकार करते हुए कहा कि वह जुलाई में इस बात पर विचार करेगा कि क्या सरकार द्वारा स्वीकार ना की जाने वाली कमीशन की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है?

Written by Nizam Kantaliya |Published : April 14, 2023 11:52 AM IST

नई दिल्ली: ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले हिन्दू दलितों को आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की याचिका को खारिज करते हुए इस मुद्दे पर सुनवाई का फैसला किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र द्वारा गठित 3 सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने से इंकार करते हुए कहा कि वह जुलाई में इस बात पर विचार करेगा कि क्या सरकार द्वारा स्वीकार ना की जाने वाली कमीशन की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह इस बिंदू पर भी सुनवाई करेगा कि प्रकृति और चरित्र को देखते हुए जाति व्यवस्था को इस्लाम या ईसाई धर्म में शामिल किया किया जा सकता है या नहीं? अदालत इस मुद्दे पर 11 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी.

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कितने कमीशन बनेंगे?

जस्टिस संजय किशन कौल,जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ देश में हिन्दू धर्म से इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को SC/ST का दर्जा दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से ASG के एम नटराज ने कहा कि केन्द्र सरकार ने इस मामले में नया कमीशन नियुक्त किया है. वह अपना काम कर रहा है.कोर्ट को कमीशन की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए.

सरकार का पक्ष रख रहे एएसजी नटराजन ने कहा कि रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट बिना किसी फील्ड और कंसल्टेशन के तैयार की गई थी.

केन्द्र के जवाब पर पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर कितने कमीशन बनेंगे? एक के बाद एक कमीशन का क्या औचित्य है? ये भी नहीं पता कि वर्तमान कमीशन की रिपोर्ट भी पहले जैसी नहीं होगी?

पीठ ने कहा कि दो दशक बीत चुके हैं. प्रत्येक व्यवस्था का अपना विचार और संदर्भ की शर्तें होंगी. सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति के आदेश में विशेष समुदायों को शामिल करने के लिए रिट जारी की जा सकती है.

पीठ ने कहा कि रंगनाथ मिश्रा पैनल की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया है तो सवाल यह है कि इस पर कहां तक भरोसा किया जा सकता है? अनुभवजन्य डेटा की खोज की स्थिति क्या है ?

बहिष्कार को अवैध घोषित करें

केन्द्र के जवाब का याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने विरोध किया, उन्होने अदालत से कहा यह एक संवैधानिक सवाल है कि क्या राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव कर सकता है? सरकार अब कह रही हैं कि उन्होंने दो साल के कार्यकाल के साथ एक नया आयोग नियुक्त किया है. लेकिन क्या अदालत को सरकार के इस बयान पर बार-बार इंतजार करना चाहिए?

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वे इस वर्ग को शामिल करने के लिए नहीं कह रहे हैं, बल्कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों के बहिष्कार को असंवैधानिक, अवैध और मनमाना कह रहे है?

याचिका 2004 में दाखिल की गई थी. अदालत ने कहा कि 19 साल हो गए हैं. जस्टिस संजय किशन कौल ने एएसजी केएम नटराज से पूछा कि संविधान मे जो बातें कही गई है उसी के मुताबिक इस मुद्दे को निर्धारित कर सकते हैं यहां यही मुद्दा है . सवाल यह है कि जिस संवैधानिक मुद्दे पर याचिकाकर्ता बात कर रहे हैं. क्या अदालत को कमीशन की रिपोर्ट तक इंतजार करना चाहिए?

मिश्रा आयोंग से इंकार

जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हिन्दू धर्म से इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति को SC/ST का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की थी.

गौरतलब है कि इस मामले में केन्द्र सरकार ने रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था. सरकार ने कहा था थ ​मिश्रा आयोग ने सभी पहलुओं पर गौर नहीं किया था.

सरकार के अनुसार इस्लाम और क्रिश्चियनिटी अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन धर्मों में जातीय आधार पर भेदभाव नहीं है.ईसाई या इस्लाम समाज में छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था प्रचलित नहीं थी.

ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है. सिखों, बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई धर्म में धर्मांतरण से भिन्न रही है. दूसरे धर्म में परिवर्तन करने पर व्यक्ति अपनी जाति खो देता है.

दो दशक से सुनवाई

दलित ईसाइयों और मुसलमानों (ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले हिन्दू दलित) को आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने के मुद्दे को लेकर वर्ष 2004 में यह याचिका दायर की गई थी.

इस मामले में पहले जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हिन्दू धर्म से इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति को SC/ST का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की थी.

केन्द्र सरकार ने मिश्रा आयेाग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इस मामले में पूर्व सीजेआई केजी बालाकृष्णन के नेतृत्व में एक पैनल नियुक्त किया था, जो यह जांचने के लिए था कि क्या अनुसूचित जाति का दर्जा उन लोगों को दिया जा सकता है, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से समुदाय विशेष से संबंधित होने का दावा किया था, लेकिन अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए.

केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से इसी 3 सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की थी.