नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायपालिका में सीनियर एडवोकेट मनोनयन के मामले में वर्ष 2017 में दिए इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट मामले में निर्धारित सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन को विनियमित करने वाले दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने विविध श्रेणी को दिए गए वेटेज को नि: स्वार्थ कार्य, रिपोर्टेड और अनरिपोर्टेड जजमेंट और डोमेन विशेषज्ञता सहित 10 अंक बढ़ाने का फैसला किया है.
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने प्रकाशन को दिए गए वेटेज को 15 से घटाकर 5 अंक करने के बाद विविध श्रेणी में 10 बिंदुओं को समायोजित किया है.
पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों को फैसले प्रस्तुत करने की आवश्यकता है न कि आदेश और सीनियर एडवोकेट के रूप में डेजिग्नेशन की प्रक्रिया में केवल निर्णयों पर विचार किया जाना है.
फैसलों पर जोर देते हुए पीठ ने स्पष्ट किया है कि क्योंकि यह आमतौर पर महत्वपूर्ण और विवादित कानूनी मुद्दों से संबंधित है। इसलिए केवल पेशी ही काफी नहीं है, मामलों में वकीलों द्वारा निभाई गई भूमिका का आकलन कर यह देखना होगा कि कार्यवाही में उम्मीदवार द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है और इस पर भी विचार किया जरूरी है.
पीठ ने कहा कि फैसले में अधिवक्ता द्वारा निभाई गयी भूमिका का उल्लेख आवेदन पत्र में करना होगा. पीठ ने फैसले में सुझाव देते हुए कहा कि किसी मामले में अधिवक्ता की मात्र उपस्थिति पर्याप्त नहीं होगी
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि "हमें कार्यवाही में एडवोकेट द्वारा निभाई गई भूमिका पर भी विचार करना होगा. हाल के दिनों में और विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट में किसी मामले के लिए उपस्थित वकीलों की संख्या बहुत अधिक है.
पीठ ने कहा कि एक वकील द्वारा एक मामले पर बहस की जा सकती है, जिसे एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सहित अन्य लोगों द्वारा सहायता प्रदान की जा सकती है. इस प्रकार, वकील द्वारा निभाई गई भूमिका की जांच करने के लिए आकलन किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि अधिवक्तओं को अपने आवेदन में उनके द्वारा निभाई गयी निर्दिष्ट भूमिका के साथ पेश होना होगा, केवल केसो की संख्या को देखना पर्याप्त नहीं होगा.
पीठ ने कहा कि निजी काम में लगे वकीलों की तुलना में सरकारी वकीलों द्वारा बड़ी संख्या में उपस्थित होने के कारण उत्पन्न होने वाले किसी भी कथित नुकसान का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है.
पीठ ने सहमति व्यक्त की कि वकीलों की भूमिका का विश्लेषण करने के लिए अदालत में दाखिल सारांश की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है और उम्मीदवारों को अपने आवेदन के साथ मूल्यांकन के लिए अपने पांच सर्वश्रेष्ठ सारांश प्रस्तुत करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
डोमेन विशेषज्ञता वाले विशेष वकीलों के लिए उपस्थिति की संख्या में रियायत पर पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में एडवोकेट विशेष न्यायाधिकरणों के समक्ष विशेष रूप से प्रैक्टिस कर रहे हैं। वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तभी उपस्थित होते हैं जब उनके मामले सुप्रीम कोर्ट तक जाते हैं.
पीठ ने कहा कि यह देखा गया कि परिस्थितियों को देखते हुए उनकी उपस्थिति कम हो सकती है, और इस कम उपस्थिती को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किए जाने की प्रक्रिया में नुकसान के रूप में कार्य नही किया जाना चाहिए.
फैसले में पीठ ने सुझाव दिया कि इन वकीलों को उपस्थिति की संख्या के संबंध में रियायत देते हुए कहा कि "डोमेन विशेषज्ञता वाले विशिष्ट वकीलों को अपने क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दी जानी चाहिए और सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित होने के अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए ... एडवोकेट की यह श्रेणी और उनकी विशेषज्ञता कानून के सभी विशेष क्षेत्रों की उन्नति के लिए भी आवश्यक है.
विविध कैटेगरी के तहत खंडपीठ ने मनोनयन की प्रक्रिया में विविधता के हित पर सहमति देते हुए कहा कि वकालात के पेशे ने समय के साथ प्रतिमान बदलाव देखा है, विशेष रूप से नए लॉ स्कूलों जैसे नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के आगमन के साथ। कानूनी पेशे को अब फैमिली बिजनेस के रूप में नहीं माना जाता। इसके बजाय, देश के सभी हिस्सों से और अलग-अलग पृष्ठभूमि से नए लोग आ रहे हैं और ऐसे नवागंतुकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.