नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए उत्तराखंड और गुजरात राज्यों की ओर से गठित की गई समितियों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता अनूप बरनवाल द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज करते हुए याचिका को अयोग्य बताया है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ ने याचिका पर कहा कि राज्यों द्वारा समितियों का गठन करने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 162 कार्यपालिका को ऐसा करने की शक्ति देता है. सीजेआई ने कहा कि ऐसी समितियों के गठन को अदालतों के समक्ष अल्ट्रा वायर्स के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
सीजेआई की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए यूसीसी को लागू करने से पहले उसके हर पहलू पर ध्यान पूर्वक विचार करने के लिए ही इसका गठन हुआ है. और ऐसे में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कमेटी का गठन करना किसी भी तरह से गलत नहीं हैं.
सीजेआई ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को संबोधित करते हुए कहा कि "इसमें गलत क्या है? उन्होंने केवल अपनी कार्यकारी शक्तियों के तहत एक समिति का गठन किया है जो अनुच्छेद 162 देता है ... समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 को देखें."
इस मामले की शुरुआत मई 2022 में उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य में संबंधित व्यक्तिगत कानूनों की जांच करने और यूसीसी को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय पैनल का गठन करने के साथ हुई थी.
उत्तराखण्ड सरकार के फैसले के कुछ महीने बाद ही अक्टूबर 2022 में, गुजरात सरकार के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने सूचित किया था कि राज्य यूसीसी लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है.
इसके साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत में भी देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग को लेकर कई अलग अलग जनहित याचिका दायर हुई है.