नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को तमिलनाडु में मार्च निकालने की अनुमति देने संबंधित मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हर चीज पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, और हर चीज की अनुमति नहीं दी जा सकती है… सभी रूट मार्च पर एक परमादेश नहीं हो सकता है.
रोहतगी ने कहा कि "जुलूस निकालने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है। यह संविधान के भाग III में विभिन्न प्रतिबंधों के अधीन है. यह निर्देश कैसे हो सकता है कि जहां वांछित हो वहां मार्च आयोजित किया जा सकता है?
बहस सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने सरकार की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.
गौरतलब है कि तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी. मद्रास हाईकोर्ट ने फ़रवरी 17 को तमिलनाडु राज्य की पुलिस को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राज्य भर के विभिन्न जिलों में सार्वजनिक सड़कों पर रूट मार्च निकालने की अनुमति देने का आदेश दिया था.
मद्रास हाई कोर्ट ने 10 फरवरी को आरएसएस को पुनर्निर्धारित तिथियों पर तमिलनाडु में अपना रूट मार्च निकालने की अनुमति दी थी और कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध आवश्यक हैं. राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में सुरक्षा कारणों के चलते रूट मार्च की अनुमति देने से इंकार कर दिया था.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद तमिलनाडु पुलिस ने आरएसएस के मार्च को नहीं निकलने दिया था.आरएसएस ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आरएसएस को राज्य के विभिन्न जिलों में सार्वजनिक सड़कों पर रूट मार्च निकालने की अनुमति दे दी थी.