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असली उम्र साबित करने के लिए आधार कार्ड उपयुक्त डॉक्यूमेंट नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि स्कूल परित्याग सर्टिफिकेट (School Leaving Certificate) उम्र सीमा तय करने के लिए उचित प्रूफ है, वहीं आधार कार्ड सबसे पहचान साबित करने के लिए उपयुक्त है.

सुप्रीम कोर्ट, सैम्पल आधार कार्ड

Written by Satyam Kumar |Published : October 25, 2024 8:25 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें मुआवजा देने के लिए सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले व्यक्ति की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड को स्वीकार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि स्कूल परित्याग सर्टिफिकेट (School Leaving Certificate) उम्र सीमा तय करने के लिए उचित प्रूफ है, वहीं आधार कार्ड पहचान साबित करने के लिए उपयुक्त है. शीर्ष अदालत का ये फैसला  2015 में हुई सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिजनों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए आया. एमएसीटी, रोहतक ने मृतक के परिजनों को 19.35 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जिसे उम्र को लेकर हाईकोर्ट ने 9.22 लाख कर दिया था.

Age Proof के लिए चाहिए 'स्कूल परित्याग सर्टिफिकेट'

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि मृतक की उम्र किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र (SLC) में उल्लिखित जन्मतिथि से निर्धारित की जानी चाहिए.

पीठ ने उल्लेख किया,

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‘‘हमने पाया कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने अपने परिपत्र संख्या 8/2023 के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 20 दिसंबर, 2018 को जारी एक कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में कहा है कि एक आधार कार्ड पहचान स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है."

शीर्ष अदालत ने दावेदार-अपीलकर्ताओं के तर्क को स्वीकार कर लिया और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के फैसले को बरकरार रखा, जिसने मृतक की उम्र की गणना उसके विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र के आधार पर की थी.

असली उम्र को लेकर था विवाद?

शीर्ष अदालत 2015 में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति के परिजनों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. एमएसीटी, रोहतक ने 19.35 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश दिया था जिसे उच्च न्यायालय ने यह देखने के बाद घटाकर 9.22 लाख रुपये कर दिया कि एमएसीटी ने मुआवजे का निर्धारण करते समय आयु गुणक को गलत तरीके से लागू किया था. उच्च न्यायालय ने मृतक के आधार कार्ड पर भरोसा करते हुए उसकी उम्र 47 वर्ष आंकी थी. परिवार ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने आधार कार्ड के आधार पर मृतक की उम्र निर्धारित करने में गलती की है क्योंकि यदि उसके विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र के अनुसार उसकी उम्र की गणना की जाती है तो मृत्यु के समय उसकी उम्र 45 वर्ष थी.