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कोर्ट ने रखा प्रोफेसर की बर्खास्तगी को बरकरार, कहा 'मुस्लिम के रूप में अनुसूचित जाति वर्ग के लाभ के हकदार नहीं'

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के एक प्रोफेसर, जो कि अनुसूचित जाति के तहत नौकरी पाए थे,उनकी बर्खास्दगी को सही ठहराया है. कोर्ट ने कहा क्योंकि प्रोफेसर मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित है इसलिए वो अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र पाने के हक़दार नहीं है.

Written by My Lord Team |Published : June 12, 2023 3:50 PM IST

नई दिल्ली: पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के एक प्रोफेसर, जो कि अनुसूचित जाति के तहत नौकरी पाए थे,उनकी बर्खास्दगी को सही ठहराया है. कोर्ट ने कहा क्योंकि प्रोफेसर मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित है इसलिए वो अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र पाने के हक़दार नहीं है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस जयश्री ठाकुर ने कहा , "इस न्यायालय की राय है कि भले ही याचिकाकर्ता ने एससी प्रमाण पत्र प्राप्त करने के समय गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया हो या धोखाधड़ी से प्राप्त किया हो, लेकिन चूंकि उसने दावा किया था और उसे उक्त प्रमाण पत्र के तहत लाभ दिया गया था, जिसके लिए वह निश्चित रूप से हकदार नहीं था। , उन्हें सेवा में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”

साल 2010 में आबिद अली को एससी श्रेणी के तहत सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिली थी। लेकिन साल 2012 में एक परीक्षा पास न कर पाए उमीदवार ने विश्ववविद्यालय को इस मामले में शिकायत दर्ज करवाई. जिसमें उसने दावा किया की आबिद अली ने खुद को जुलाहा समुदाय का बताया है. लेकिन अब वो मुस्लिम हैं और मुस्लिम होने के नाते अब उनका एससी वर्ग में चयन नहीं हो सकता है.

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इसके बाद साल 2017 में जांच कर रही एक कमेटी ने पाया कि याचिकाकर्ता को कोई एससी प्रमाणपत्र जारी नहीं हुआ है. इसके बाद समिति की सिफारिशों पर विचार के लिए कार्यकारिणी परिषद का द्वारा एक अन्य समिति का गठन किया गया. इसके बाद कार्यकारिणी परिषद के द्वारा प्रोफेसर को हटाने का फैसला लिया गया, इसके बाद प्रोफेसर अदालत पहुँच गए.

इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, "भले ही तर्क के लिए यह मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता की ओर से कोई गलतबयानी या धोखाधड़ी नहीं की गई है, क्योंकि याचिकाकर्ता और उसके पिता के नाम से यह स्पष्ट है कि वह मुस्लिम समुदाय से है, यह इस तथ्य के बावजूद है कि अनुसूचित जाति से संबंधित जाति प्रमाण पत्र उनके पक्ष में जारी किया गया था।"

"लेकिन कानून की स्थापित स्थिति यह है कि अनुसूचित जाति का दर्जा पाने वाले व्यक्ति को हिंदू धर्म या संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के पैरा 3 में निर्दिष्ट किसी भी अन्य धर्म को मानना होगा, जैसा कि राष्ट्रपति द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किया गया है।"

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि उन्हें 16 साल की सेवा अवधि के लिए लाभ दिया जाना चाहिए। इस पर अदालत ने कहा, "...चूंकि अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता की नियुक्ति जिसके लिए वह हकदार नहीं था, शुरू से ही शून्य है, उसे सेवा की लंबाई का लाभ नहीं मिल सकता है जिसके लिए वह पात्र नहीं था।"

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि, याचिकाकर्ता प्रोफेसर को दिए गए वेतन की वसूली नहीं की जाएगी. साथ ही सरकारी आवास भी तुरंत खाली नहीं करना है. याचिकाकर्ता दो महीने की अवधि के अंदर आवास खाली कर सकता है.