नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने और पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट रिपोर्ट पेश करने के मामले में महत्वपूर्ण फैसले देते हुए एक व्यवस्था को स्पष्ट किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन मामलो में हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर को खारिज कर दिया गया है उन मामलो में राज्यों की पुलिस को क्लोजर रिपोर्ट दायर नहीं की जानी चाहिए.
जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने फैसले में कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता इस तरह के मामलो में क्लोजर रिपोर्ट पेश करने के लिए नहीं कहती.
पीठ ने इस फैसले की प्रति राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशको को भेजते हुए यह सुनिश्चित करने के आदेश दिए हे कि पुलिस उन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दर्ज न करे जहां आपराधिक शिकायत या कार्यवाही पहले ही हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर दी गई है.
पीठ ने इसकी पालना राज्य के सभी पुलिस थानो को भेजकर इसकी पालना कराने के निर्देश दिए है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.
तत्कालीन मुख्यमंत्री टीएस रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के संबंध में दो पत्रकारों सहित तीन लोगो के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी थी.पत्रकारों ने उनके खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करने का अनुरोध करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों के खिलाफ अपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुनौती दी..
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में यह लाया गया कि उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने के आदेश के बाद भी पुलिस ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट तैयार की है.
पीठ ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा है कि "हम वास्तव में हैरान हैं कि जब हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही / एफआईआर को रद्द कर दिया गया था, जिसे बाद में राज्य द्वारा चुनौती दी गई थी, तो आईओ द्वारा क्लोजर रिपोर्ट कैसे हो सकती है ... यदि इस तरह की प्रथा का पालन किया जा रहा है, इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि हम मानते हैं कि हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही / प्राथमिकी को रद्द करने के मामले में, धारा 173 सीआरपीसी के तहत क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने या दर्ज करने का कोई सवाल ही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 28 मार्च को संबंधित जांच अधिकारी (आईओ) को स्पष्टीकरण देने के लिए कोर्ट में तलब किया था. कोर्ट में पेश हुए जाचं अधिकारी ने हलफनामे में गलती को स्वीकार किया था.
उत्तराखंड सरकार के एएसजी ने भी पुलिस की कार्यवाही को अनावश्यक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से क्लोजर रिपोर्ट को नजरअंदाज करने का अनुरोध किया था.
पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि जिन मामलो में एक बार जब आपराधिक कार्यवाही/प्राथमिकी को रद्द कर दिया जाता है, तो उस मामले में कोई भी अंतिम रिपोर्ट या क्लोजर रिपोर्ट दाखिल नहीं की जा सकती है.