Genetically Modified Mustard: मंगलवार के दिन सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को देश में जीएम फसलों के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने का निर्देश दिए. सुनवाई कर रही डिवीजन बेंच के जजों के बीच जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों की व्यवासायिक बिक्री की अनुमति देने को लेकर आपसी सहमति नहीं बन पाई है. वहीं इस विषय किसी निश्चित फैसले पर पहुंचने के लिए डिवीजन बेंच ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों के मामले को सीजेआई के समक्ष सूचीबद्ध करें.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों (Genetically Modified Mustard) की बिक्री के पहलुओं पर एक-दूसरे से असहमति जताई, लेकिन वे देश में अनुसंधान, खेती, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में जीएम फसलों के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने पर सहमत हुए.
अदालत ने कहा,
"उक्त राष्ट्रीय नीति सभी हितधारकों, जैसे कि कृषि, जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के विशेषज्ञ, राज्य सरकारें, किसानों के प्रतिनिधि आदि के परामर्श से तैयार की जाएगी. तैयार की जाने वाली राष्ट्रीय नीति का उचित प्रचार किया जाएगा. नीति को तैयार करने में राज्य सरकारों को भी शामिल किया जाना चाहिए."
पीठ ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राष्ट्रीय परामर्श आयोजित करेगा, चार महीनों के भीतर, जिसका उद्देश्य जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति तैयार करना है.
पीठ ने आगे कहा,
“जीएम खाद्य और विशेष रूप से जीएम खाद्य तेल के आयात के मामले में, प्रतिवादी एफएसएसए, 2006 की धारा 23 की आवश्यकताओं का अनुपालन करेगा, जो खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग और लेबलिंग से संबंधित है.”
अदालत ने कहा,
"डीएमएच-11 के पर्यावरणीय विमोचन के लिए सशर्त मंजूरी देने के जीईएसी और पर्यावरण मंत्रालय के निर्णय पर हमारे द्वारा व्यक्त किए गए मतभेद को ध्यान में रखते हुए, रजिस्ट्री इस मामले को माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेगी ताकि उक्त पहलू पर नए सिरे से विचार करने के लिए एक उपयुक्त पीठ का गठन किया जा सके."
डिवीजन बेंच ने रजिस्ट्री को निर्देश देते हुए कहा कि वे एक निश्चित फैसले के लिए मामले को सीजेआई के पास सूचीबद्ध करें जिससे जीएम मस्टर्ड को लेकर एक निश्चित फैसला निकलें.
जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाया कि ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच-11 के पर्यावरणीय विमोचन के लिए मंजूरी एहतियाती सिद्धांत का उल्लंघन करती है, क्योंकि इस बात का कोई निर्धारण नहीं किया गया है कि क्या ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच-11 एक एचटी फसल है और यदि ऐसा है, तो उक्त पौधे से पर्यावरण सहित अन्य पौधों के साथ-साथ मनुष्यों और जानवरों को किस प्रकार का खतरा होगा.”
असहमति व्यक्त करते हुए जस्टिस संजय करोल ने कहा कि सशर्त स्वीकृति प्रदान करने का जीईएसी का निर्णय, निकाय, जो स्वयं एक विशेषज्ञ निकाय है, की ओर से विवेक या कानून के किसी अन्य सिद्धांत का प्रयोग न करने के कारण दोषपूर्ण नहीं है.
जस्टिस नागरत्ना के अनुसार,
"आवेदक, अर्थात् सीजीएमसीपी, दिल्ली विश्वविद्यालय (दक्षिण परिसर) द्वारा किए गए आवेदन पर ट्रांसजेनिक सरसों संकर डीएमएच-11 के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी देने के संबंध में जीईएसी की 18 अक्टूबर, 2022 की सिफारिशें, साथ ही प्रतिवादी भारतीय संघ द्वारा 25 अक्टूबर, 2022 को लिया गया निर्णय, दोषपूर्ण है और इसलिए, उन्हें रद्द किया जाना चाहिए और उन्हें रद्द किया जाता है."
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
"मैं आगे यह भी देखता हूं कि वर्ष 2022 में जीईएसी द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिश का कोई महत्व नहीं है और यह बाध्यकारी नहीं है."
लेकिन न्यायमूर्ति संजय करोल ने कहा कि जीईएसी की संरचना नियमों के अनुसार है.
जस्टिस करोल ने कहा,
"जीएमओ से संबंधित सभी निकायों के निर्णय लेने की न्यायिक समीक्षा संभव है। एहतियाती सिद्धांत के मद्देनजर एचटी फसलों पर प्रतिबंध का सवाल उचित नहीं है और यह नीति के दायरे में आने वाला निर्णय है."
जस्टिस करोल ने आगे कहा,
"जीईएसी की संरचना नियमों के अनुसार है, जिसकी संवैधानिकता की चुनौती विफल हो गई है और नियमों में किसी भी बदलाव के अभाव में इसमें कोई दोष नहीं पाया जा सकता है."
जस्टिस संजय करोल ने से भी कहा,
"जीईएसी द्वारा सशर्त मंजूरी देने का निर्णय, निकाय की ओर से दिमाग या कानून के किसी अन्य सिद्धांत के उपयोग न करने से प्रभावित नहीं होता है, जो स्वयं एक विशेषज्ञ निकाय है."
आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों की व्यावसायिक खेती के लिए मंजूरी देने के केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं. केंद्र द्वारा पहले दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि केन्द्र कम इनपुट-उच्च उत्पादन वाली कृषि के विकास के माध्यम से कृषि उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने तथा देश को खाद्य तेल और अनाज फलियों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है.
भारत में लगभग 55-60 प्रतिशत खाद्य तेल आयात किया जाता है. केंद्र ने कहा है कि जीई प्रौद्योगिकी जैसी नई आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग सहित पादप प्रजनन कार्यक्रमों को मजबूत करना भारतीय कृषि में उभरती चुनौतियों का सामना करने और विदेशी निर्भरता को कम करते हुए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है.