नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने देश की राष्ट्रीय बैंको द्वारा विभिन्न अदालतों में नियुक्त किए जाने वाले पैनल लॉयर्स की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया है.
हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय बैंको के पैनल लॉयर्स में SC/ST और OBC को शामिल करते हुए नई संशोधित प्रक्रिया चार माह में तैयार करने के आदेश दिए है.
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम की पीठ ने राष्ट्रीय बैंको द्वारा पैनल लॉयर्स की नियुक्ति प्रकिया को चार माह में संशोधित करने का आदेश देते हुए साफ कहा है कि नई संशोधित प्रक्रिया में समाज के सभी वर्ग को समान अवसर प्रदान किया जाए.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सभी राष्ट्रीय बैंक अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते और उन्हे पैनल लॉयर्स मनोनित करते समय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को समान अवसर देंना होगा.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि बैंकों के लिए अधिवक्ताओं के पैनल नियुक्त करने की मौजूदा प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी और बड़े लोगो की पहचान वाले लोगों के पक्ष के लॉयर्स चुने गए.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि वर्तमान में, प्रत्येक बैंक ने वकीलों को सूचीबद्ध करने के लिए अपनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.
पीठ ने कहा कि चूंकि राष्ट्रीयकृत बैंक संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, इसलिए वे "भारतीय संविधान के तहत समान अवसर के अनिवार्य सिद्धांतों" को लागू करने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते.
हाईकोर्ट की एकलपीठ ने देश के सभी 28 राष्ट्रीयकृत और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पैनल नियुक्ति की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए चार महीने का समय दिया है.
नई प्रक्रिया में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (एससी / एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान करना होगा.
मद्रास हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता के मारीमुथु ने याचिका दायर कर अनुरोध किया गया कि अदालत भारतीय रिजर्व बैंक को पिछले सर्कुलर को बहाल करने का आदेश दे, जिसमें सभी बैंकों को एससी/एसटी/ओबीसी समुदाय के वकीलों को समान रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया गया था.
देश में उदारीकरण के बाद बढे व्यापारिक मामलो में राष्ट्रीय बैंको को अधिक अधिवक्ताओं की जरूरत महसूस होने पर आरबीआई द्वारा 1991 में पैनल नियुक्ति को लेकर परिपत्र जारी किया गया था.
इस परिपत्र के अनुसार राष्ट्रीय बैंको द्वारा नियुक्त किए जाने वाले अधिवक्ताओं के पैनल में सभी वर्ग को समान अवसर दिए जाने का प्रावधान भी शामिल किया गया था.
करीब 15 साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने पुराने आदेश को संशोधित करते हुए दिसंबर 2006 में परिपत्र को वापस ले लिया था.
उदारीकरण के बाद के बाद बैंको में हुए विभिन्न परिवर्तनों का हवाला देते हएु आरबीआई ने जनवरी 1991 और जून 2004 के बीच जारी किए गए 41 परिपत्रों के एक सेट को वापस ले लिया था.
हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को समान अवसर देने के सर्कुलर का परिचालन संबंधी मामलों में बदलाव से कोई लेना-देना नहीं था, और इसलिए इसे वापस नहीं लिया जाना चाहिए था.
उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि राष्ट्रीयकृत भारतीय स्टेट बैंक समूह के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 19 राष्ट्रीयकृत बैंक और 6 बैंक सार्वजनिक क्षेत्र और 3 अन्य बैंक हैं.
याचिका में कहा गया कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान नहीं किया जा रहा है, जिससे यह वर्ग बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों से वंचित किया जा रहा है.
हालाँकि, आरबीआई ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं था और अदालतों को बैंकों के आंतरिक संचालन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
हाईकोर्ट ने आरबीआई को तर्क केा सिरे से खारिज करते हुए चार माह में संशोधित नई प्रक्रिया तैयार करने के आदेश दिए है जिसमें SC/ST और OBC के उम्मीदवारों को भी समान अवसर प्रदान करना होगा.