Advertisement

केरल में राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के वीसी पद से हटाने का विधेयक पारित

केरल के कानून मंत्री पी राजीव द्वारा पेश किया गया यूनिवर्सिटी कानून (संशोधन) (नंबर 2) विधेयक, 2022 राज्यपाल को यूनिवर्सिटी के पदेन वीसी के रूप में हटाने और राज्य सरकार को वीसी नियुक्त करने के लिए सशक्त बनाने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबंधित आठ अधिनियमों में संशोधन करने की अनुमति देता है.

Written by nizamuddin kantaliya |Published : December 13, 2022 12:48 PM IST

नई दिल्ली, केरल में विश्वविद्यालयों के वीसी (Vice Chancellor)  पद पर राज्यपाल की जगह शिक्षाविदों की नियुक्ति को लेकर लाया विधेयक विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया. इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद केरल के सभी विश्वविद्यालयों के वीसी पद पर राज्यपाल की जगह शिक्षाविदों की नियुक्ति की जा सकेगी.

सरकार के अनुसार

केरल के कानून मंत्री पी राजीव द्वारा पेश किया गया यूनिवर्सिटी कानून (संशोधन) (नंबर 2) विधेयक, 2022 राज्यपाल को यूनिवर्सिटी के पदेन वीसी के रूप में हटाने और राज्य सरकार को वीसी नियुक्त करने के लिए सशक्त बनाने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबंधित आठ अधिनियमों में संशोधन करने की अनुमति देता है.

Also Read

More News

इस विधेयक के जरिए सरकार ने केरल कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम1971, केरल विश्वविद्यालय अधिनियम1974, कालीकट विश्वविद्यालय अधिनियम 1975, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय अधिनियम 1985, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम1994, कन्नूर विश्वविद्यालय अधिनियम1996, केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय अधिनियम 2010, और केरल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य विज्ञान अधिनियम 2010 में संशोधन कर सकेगी.

केरल के कानून मंत्री के अनुसार नए विधेयक में नियुक्त वीसी का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा और वह पुनर्नियुक्ति का भी पात्र होगा. सरकार के पास वीसी के खिलाफ गंभीर शिकायत या पर्याप्त कारणों के आरोप में हटाने की शक्ति भी होगी.

विपक्ष का आरोप और विरोध

कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ ने इस विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया कुलाधिपति के पद पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को नियुक्त किया जाना चाहिए ना कि शिक्षाविदों को.

वहीं यूडीएफ ने प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिये अलग-अलग वीसी की नियुक्ति का भी विरोध किया. यूडीएफ के अनुसार चयन समिति में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता तथा केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाना चाहिए था. सरकार की ओर से विपक्ष के सुझावों को दरकिनार करने पर विपक्ष ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया.

विपक्ष का आरोप है कि केरल सरकार अपने पसंदीदा लोगों को इस पद पर नियुक्त कर केरल में विश्वविद्यालयों को कम्युनिस्ट या मार्क्सवादी केंद्रों में बदलने का प्रयास कर रही है. विपक्ष के अनुसार विधेयक में कुलपति के लिए उम्र सीमा और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का कोई जिक्र नहीं है जिसके जरिए मुख्यमंत्री अपने पसंद के लोगों को नियुक्त करना चाहती है.

केरल के कानून मंत्री ने विपक्ष के बहिष्कार का यह कहते हुए बचाव किया कि किसी भी जज को चयन समिति का हिस्सा नहीं होना चाहिए और विधानसभा अध्यक्ष बेहतर विकल्प है.

5 साल के लिए होगी नियुक्ति

नए विधेयक के अनुसार सरकार कृषि और पशु चिकित्सा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, समाज विज्ञान, मानविकी, साहित्य, कला, संस्कृति, कानून या लोक प्रशासन समेत अलग-अलग क्षेत्रों के किसी शिक्षाविद या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त कर सकती है. विधेयक में कुलपति पद के लिए पांच साल के कार्यकाल का प्रावधान किया गया है.

क्या राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा विधेयक

विधानसभा से पारित होने के बाद अब विधेयक को हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास भेजा जाएगा. विधायी नियमों के अनुसार, कानून बनने के लिए सभी विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने आवश्यक है.

गर्वनर खान ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह अपने से जुड़े किसी मुद्दे पर फैसला नहीं सुनाएंगे. इसलिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. दूसरी तरफ हाल ही में उनका दिया गया बयान भी चर्चा में है जब उन्होंने कहा था कि यदि कोई अध्यादेश/बिल लाया जाता है, तो वह खुशी-खुशी उस पर हस्ताक्षर करेंगे.

नया नहीं है विवाद

गौरतलब है कि केरल में विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और पिनराई विजयन सरकार के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है.

मामले में उस समय नया मोड़ आया था जब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने केरल के सभी 9 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से इस्तीफा देने को कहा था. केरल हाई कोर्ट ने भी मामले का अंतिम रूप से निपटारा होने तक नई नियुक्ति पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद से पिनयन सरकार और राज्यपाल के बीच तनातनी और तेज हो गई. जिसके अध्यादेश लाने का कैबिनेट का फैसला इसी विवाद के बाद सामने आया है.

पिनयन सरकार की ओर से सितंबर में आनन-फानन में बुलाए गए विशेष सत्र के बाद राज्यपाल को भेजे गये दो विधेयक भी लंबे समय से पेंडिंग है. हाल ही में आरिफ मोहम्मद खान की ओर से दिए गए एक बयान के बाद ये लड़ाई और आगे बढ़ गई. बयान देते हुए गवर्नर ने कहा था कि उन्हें चांसलर बनने में कोई रुचि नहीं है.