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दोषी की दलीलों से प्रभावित हुआ केरल HC, पूरी कर दी जेल से 'Ordinary Leave' पर जाने की मांग

में केरल हाईकोर्ट ने अपने पिता की हत्या में आजीवन कारावास की सजा काट रहे व्यक्ति को जेल से सामान्य लीव की मांग की इजाजत दी है.

केरल हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : July 26, 2024 1:45 PM IST

हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने अपने पिता की हत्या में आजीवन कारावास की सजा काट रहे व्यक्ति को जेल से सामान्य लीव पर जाने की मंजूरी दे दी. अदालत दोषी के कुशल तरीके से पैरवी करने से प्रभावित हुआ, साथ ही नियम को पक्ष में देख उसे जेल से ऑडिनेरी लीव पर जाने की इजाजत दी है.
केरल हाईकोर्ट में जस्टिस बेचु कुरियन थॉमस ने हत्या के दोषी की याचिका पर सुनवाई की. अदालत याचिकाकर्ता (दोषी) के दलीलों से काफी प्रभावित हुआ.
अदालत ने कहा,
“याचिकाकर्ता ने केन्द्रीय जेल से अपनी पैरवी खुद की है. उसने अपनी पैरवी में बेहतरीन स्किल और स्पष्टता का परिचय दिया है.”
हालांकि, जेल सुपरिटेंडेंट ने उसकी याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता बिना किसी ठोस कारण से प्रिजन जॉब्स से बच‌ रहा था.
जेल सुपरिटेंडेंट ने कहा,
“याचिकाकर्ता का ये व्यवहार उसे किसी तरह का राहत देने का विरोध‌ करता है.”
अदालत के सामने प्रिजन एडवाइजरी बोर्ड और लीव रिव्यू कमिटी की रिपोर्ट लाया गया जिसमें उसकी लीव का विरोध किया गया था. पुलि‌स ने भी अपनी रिपोर्ट में उसकी मांग का विरोध किया.
इस पर केरल हाईकोर्ट ने कहा,
“वेल बिहेब्ड बिहेवियर और गुड बिहेवियर के बीच अंतर हैं. इसे एक जेल से बाहर के लोगों के लिए तय पैमाने से नहीं देखना चाहिए. रिपोर्ट से जाहिर है कि अधिकारियों ने व्यक्ति की मांग पर व्यक्तिगत धारणाओं के आधार पर विचार किया है.”
पीठ ने दोषी की जिरह करने के तरीके से प्रभावित होकर उसे को केरल प्रिजन एंड करेक्शन सर्विस (मैनेजमेंट) रूल्स 2014 के अनुसार दोषी को 'जेल से बाहर जाने देने के' आदेश दिए हैं. इसके लिए केरल हाईकोर्ट ने जेल महानिदेशक और लीव रिव्यू कमेटी को याचिकाकर्ता को जेल से ऑडिनेरी लीव जाने की इजाजत देने को कहा है. केरल प्रिजन एंड करेक्शन सर्विस (मैनेजमेंट) रूल्स 2014 के नियम 397(बी) के अनुसार, दोषी को जेल से सामान्य लीव पर जाने की इजाजत देती है. नियम के अनुसार बाहर जाने की समय तीन महीने में 15 दिन से ज्यादा नहीं, वहीं छह महीने (अर्धवार्षिक) के अंदर 30 दिन से अधिक की लीव दी जा सकती है.

पूरा मामला क्या है?

याचिकाकर्ता अपने पिता की हत्या का दोषी है. साल 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे पिता की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. पिछले छह सालों से वह जेल में बंद है. उसे किसी तरह की राहत नहीं दी गई. केरल हाईकोर्ट ने इस फैसले पर कहा कि उसके खिलाफ पिता की हत्या के अलावा कोई अन्य क्रिमिनल रिकार्ड नहीं है.