नई दिल्ली: कर्नाटक हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के बंटे हुए फैसले के बाद अब 3 सदस्य पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को शीघ्र ही इस मामले की सुनवाई के लिए तारीख़ तय करने का आश्वासन दिया है.
फरवरी माह में कर्नाटक की स्कूलों में प्रायोगिक परीक्षा के चलते याचिकाकर्ता छात्राओं और उनके परिजनों की ओर से अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने सीजेआई के समक्ष इस मामले को मेंशन किया.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस जेबी परदीवाला की पीठ के समक्ष मेंशन करते हुए अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि प्रायोगिक परीक्षाओं में छात्राओं के शामिल होने के लिए अंतरिम आदेश की आवश्यकता है.
अधिवक्ता ने ये भी कहा कि 6 फरवरी 2023 से आयोजित होने वाली Practical परीक्षा में प्रभावित मुस्लिम छात्राओं को शामिल होना है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बंटे हुए फैसले के चलते उन्हें उनके लिए एक अंतरिम आदेश की आवश्यकता है.
याचिकाकर्ता की ओर अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के खंडित फैसले के बाद, प्रभावित छात्र सरकारी कॉलेजों से निजी कॉलेजों में चले गए है.
हालाँकि, चूंकि परीक्षा केवल सरकारी कॉलेजों में आयोजित की जा सकती है, इसलिए हिजाब पहनकर फरवरी की परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से पहले निर्देश जारी किए जाने चाहिए.
अधिवक्ता के अनुरोध पर सीजेआई ने इस मामले को रजिस्ट्रार के समक्ष मेंशन करने को कहा है. सीजेआई ने कहा कि यह मामला तीन सदस्य पीठ का मामला है और वे इस मामले की सुनवाई के लिए तारीख़ तय करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने 13 अक्टूबर 2022 को हिजाब विवाद में बटा हुआ फैसला सुनाया था. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने जहां कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कहा था कि 'एक समुदाय को अपने धार्मिक प्रतीकों को स्कूलों में पहनने की अनुमति देना "धर्मनिरपेक्षता के विपरीत" होगा. वही जस्टिस सुधांशु धूलिया ने स्कूलों और कॉलेजों में कहीं भी हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने से इनकार किया था. उन्होने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने का मामला केवल "पसंद का मामला" होना चाहिए.
पीठ ने इसके साथ ही इस मामले को सीजेआई को भेजते हुए उचित बेंच के गठन का अनुरोध किया था.
इस मामले की शुरुआत अक्टूबर 2021 से हुई, जब कर्नाटक के पीयू कॉलेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू की. इसके बाद मामला दब गया, लेकिन 31 दिसंबर 2021 को उडुपी के सरकारी पीयू कॉलेज में हिजाब पहनकर आई 6 छात्राओं को क्लास में आने से रोक दिया गया. जिसके बाद कॉलेज के बाहर प्रदर्शन शुरू हो गया और मामला सुर्खियों में आया.
जनवरी और फरवरी 2021 के दौरान कर्नाटक के कई कॉलेज और स्कूलों में भी ये विवाद बढ़ने लगा. कई सरकारी और निजी कॉलेजों में हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को रोका गया.
इसी बीच जनवरी के दूसरे सप्ताह में मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में भी पहुंच. कई मुस्लिम छात्राओं और उनके परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की.
9 फरवरी 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं को कोई भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. साथ ही मामले केा तीन जजों की बेंच को भेज दिया गया.
11 फरवरी 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी तरह के धार्मिक लिबास पहनने पर रोक लगा दी.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जल्दी सुनवाई से साफ इनकार कर दिया. उडुपी में सुरक्षा बढ़ा दी गई.
हिजाब मामले पर 11 दिनों तक सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने 25 फरवरी 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रखा, जिसे 15 मार्च 2022 को सुनाया गया.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि हिजाब धार्मिक लिहाज से अनिवार्य नहीं है. इसीलिए शैक्षणिक संस्थानों में इसे नहीं पहना जा सकता.