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सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्तियों से न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो सकती: जस्टिस दीपक गुप्ता

जस्टिस दीपक गुप्ता कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) द्वारा कॉलेजियम प्रणाली, न्यायिक नियुक्तियां और सुधार विषय पर नई दिल्ली में आयोजित सेमीनार को संबोधित कर रहें थे.

Written by Nizam Kantaliya |Published : February 20, 2023 5:40 AM IST

नई दिल्ली: देश की हायर ज्यूडिशरी में कार्यरत जजों के सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी आयोग और विभागों के अध्यक्ष या सदस्य पदों पर होने वाली नियुक्तियां एक बार फिर से चर्चा में हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने इन नियुक्तियों को लेकर तीखे शब्दों के साथ आलोचना की हैं.

कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) द्वारा शनिवार को नई दिल्ली में आयोजित सेमीनार को संबोधित करते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि यदि सेवानिवृति के बाद जज भी नियुक्तियों की तलाश करते हैं तो हमारे पास स्वतंत्र न्यायपालिका नहीं हो सकती.

स्वतंत्र न्यायपालिका

न्यायिक नियुक्ति और सुधार विषय पर अपने संबोधन में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि जजों के रिटायरमेंट के बाद उन्हें लाभ के किसी पद पर नहीं होना चाहिए. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यदि इस तरह के लाभ के पद पर नियुक्ति होती है तो हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो सकती. उन्होने कहा यदि सेवानिवृत्ति की दहलीज़ पर मौजूद न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद के अपनी नियुक्ति की तलाश करने के लिए सत्ता के गलियारों में भीड़ लगाते हैं तो क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है।"

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गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए गए है. जस्टिस नजीर की नियुक्ति के साथ ही इसकी आलोचना भी शुरू हो गई. सोशल मीडिया पर उनके द्वारा दिए गए फैसलों पर भी सवाल खड़े किए गए.

देशभर में सेवानिवृत्त होने के बाद जजों को आयोग के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्ति को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं. देश के पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को राज्यसभा सांसद बनाए जाने के बाद इस तरह आलोचना में बढोतरी हुई है.

संविधान की रीढ़

सेमिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कॉलेजियम प्रणाली को देश के संविधान की रीढ़ बताया. उन्होने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली के चलते आज संविधान की रक्षा करने की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. उन्होने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट केवल उदार न्यायाधीशों से भरा हुआ है तो वह भी एक बहुत दुखद दिन होगा. इसमें सभी का मिश्रण होना चाहिए.

कौन है जस्टिस गुप्ता

7 मई 1955 को शिमला हिमाचल प्रदेश में एक प्रतिष्ठित वकील के परिवार में जन्में जस्टिस दीपक गुप्ता ने  St. Edward's School, Shimla से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण की. दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ डिपार्टमेंट से वर्ष 1978 में LL.B. करने के बाद जस्टिस गुप्ता ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की.

जस्टिस गुप्ता वर्ष 2002—03 के दौरान हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहें. 26 वर्ष के वकालात के अनुभव के बाद उन्हे 4 अक्टूबर 2004 को हिमाचल हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. वर्ष 2007 में उन्हे दो बार हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी बनाया गया.

हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज के रूप में जस्टिस गुप्ता Himachal Pradesh Judicial Academy के अध्यक्ष और Himachal Pradesh State Legal Services Authority के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे.

त्रिपुरा हाईकोर्ट की स्थापना के बाद उसके पहले मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गुप्ता की नियुक्ति की गई. जस्टिस गुप्ता 23 मार्च 2013 से 15 मई 2016 तक त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के वे पहले जज भी है जिन्हे सीधे किसी दूसरे हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया. 16 मई 2016 को उनका तबादला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद पर किया गया.

करीब 6 माह बाद ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश केंद्र को भेजी. केंद्र की मंजूरी के बाद 17 फरवरी 2017 को वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए और करीब तीन साल के कार्यकाल के बाद 6 मई 2020 को सेवानिवृत्त हुए.

सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए जस्टिस गुप्ता ने अपने कार्यकाल के दौरान एक ​ही दिन में उनकी बेंच के समक्ष सूचीबद्ध 33 मामलो की सुनवाई करते हुए फैसला दिया था.