Supreme Court to Judges And Public Prosecutor: सुप्रीम कोर्ट ने अदालती कार्यवाही के दौरान जजों और पब्लिक प्रॉसीक्यूटर को अपनी भूमिका तत्परता से निभाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे सुनवाई के दौरान केवल टेप रिकार्डर की तरह बर्ताव नहीं करें बल्कि गवाहों (Witness) से तटस्थता पूर्वक सवाल भी पूछें जिससे मामले की पूरी सच्चाई सामने आ सकें. अदालत ने विटनेस की गवाही देने के दौरान क्रॉस-एग्जामिनेशन करने पर जोड़ देने को कहा है जिससे बाद में अगर गवाह अपने बयान से मुकरता है तो भी मामले की कार्यवाही बाधित नहीं हो.
यह मामला साल 1995 का है जब एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या की थी. केस में 5 वर्षीय बच्ची के बयान के आधार पर पिता को दोषी ठहराया गया था. लेकिन वह बाद में अपने बयान से मुकर गई. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने जो उससे सवाल-जवाब किए थे उससे कोई गड़बड़ी सामने नहीं आ सकी है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति को राहत देने से मना किया है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले को सुना. बेंच ने स्पष्ट किया कि पब्लिक प्रॉसीक्यूटर गवाहों से प्रभावी ढंग से सवाल-जवाब नहीं करते हैं. और बाद में गवाह के मुकरने या होस्टाइल होने के बाद न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती है.
बेंच ने कहा,
"अदालत केवल टेप रिकार्डर की तरह गवाहों के बयान दर्ज नहीं करें, बल्कि प्रक्रिया में सहभागी बनें. जज को कार्यवाही पर पूरी तरह से नजर रखनी चाहिए जिससे की न्याय मिलने में आसानी हो."
बेंच ने कहा, अपराधिक अपीलों के दौरान गवाहों के बयान किसी काम के नहीं होते हैं. क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की पूछताछ का भी कोई स्पष्ट मतलब नहीं होता है.
बेंच ने आगे कहा, क्रॉस-एग्जामिनेशन का अर्थ गवाहों के बयान एवं पुलिस द्वारा दर्ज किए बयानों में अंतर निकालना नहीं होता है.
बेंच ने सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत दर्ज किए गए आरोपी के बयानों पर निर्भर रहने की अपेक्षा अदालती कार्यवाही के दौरान गवाहों के क्रॉस-एग्जामिनेशन पर जोड़ देने को कहा है. ताकि वे दोनों में अंतर निकाल कर फैसला लेने से बच सकें और मामले की तह तक जाया जा सकें.