नई दिल्ली: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस उदय उमेश ललित ने एक बार फिर से देश की न्यायपालिका के वर्तमान कॉलेजियम सिस्टम का बचाव किया है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने वर्तमान कॉलेजियम सिस्टम को परफेक्ट के बेहद करीब बताते हुए कहा है कि मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की तुलना में वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई बेहतर प्रणाली उपलब्ध नहीं है.
जस्टिय ललित शनिवार को इंडिया सोसायटी आफ इंटरनेशनल लॉ के सभागार में Campaign for Judicial Accountability and Reforms (CJAR) की ओर से आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में प्रथम सत्र को संबोधित कर रहें थे.
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जस्टिस ललित ने कहा कि आज जिस मॉडल के अनुसार हम काम करते हैं वह लगभग एक आदर्श मॉडल है. उन्होने कहा कि जज यह तय करने के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं कि उम्मीदवार नियुक्ति के योग्य है या नहीं.
जस्टिस ललित ने कहा कि न्यायपालिका उम्मीदवारों की योग्यता का न्याय करने के लिए बेहतर स्थिति में है, क्योंकि उन्होंने वर्षों से उनकी प्रेक्टिस को देखा हैं, कार्यपालिका इस तरह का आकलन करने की स्थिति में नहीं हो सकती है.
उन्होने कहा कि मेरे हिसाब से हमारे पास कॉलेजियम सिस्टम से बेहतर कोई सिस्टम नहीं है. यदि हमारे पास गुणात्मक रूप से कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर कुछ नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से, हमें यह संभव बनाने की दिशा में काम करना चाहिए कि यह कॉलेजियम प्रणाली जीवित रहें.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ललित करीब दो वर्ष तक कॉलेजियम के सदस्य रहे है. वही अगस्त 2022 में देश के मुख्य न्यायाधीश बनने से लेकर 8 नवंबर 2022 तक के वे इस कॉलेजियम के अध्यक्ष भी रहे है.
कॉलेजियम के दोरान के अनुभव को साझा करते हुए जस्टिस ललित ने कहा कि कॉलेजियम के सदस्य के रूप में उनके समक्ष करीब 325 नाम रखे गए थे, उन्होने कहा कि इन सिफारिशों को चयन प्रक्रिया के माध्यम से फ़िल्टर किया जाता है जिसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार के स्तर से इनपुट शामिल होते हैं.
जस्टिस ललित ने कहा कि देश में जजों की नियुक्ति और उनकी पदोन्नति में सर्वाधिक भूमिका हाईकोर्ट के कॉलेजियम की होती हैं. अगर किसी हाईकोर्ट का कॉलेजियम योग्य उम्मीदवारों की सिफारिश करते है तो देश के बेहतर और योग्य जज मिलते है.
जस्टिस ललित ने कहा कि एक कठोर प्रक्रिया के बाद नामों को मंजूरी दे दी जाती है, कॉलेजियम के बाद ये मामला फिर केंद्र सरकार के पास जाता है.उनके इनपुट को वास्तव में पहले के स्तर पर ध्यान में रखा जाता है, लेकिन उनके पास विस्तृत करने के लिए कुछ हो सकता है. उन आपत्तियों को आम तौर पर पुनर्विचार करने के लिए कॉलेजियम में वापस आना चाहिए.
जस्टिस ललित ने कहा कि किसी जज के नाम की सिफारिश के लिए सुप्रीम कोर्ट को एकमत होने की आवश्यकता नहीं है. यह कॉलेजियम में बहुमत की संख्या से भी हो सकता है.लेकिन पुनरावृत्ति के नाम पर सर्वसम्मति जरूरी है.
केन्द्र द्वारा वापस भेजने वालो नामों को लेकर जस्टिस ललित ने कहा कि पुनरावृत्ति के स्तर पर काफी विचार मंथन किया जाता है, उसके बाद ही उन नामों को फिर से भेजा जाता है.
गौरतलब है देश की हायर ज्यूडिशरी में जजों की नियुक्ति को लेकर पिछले कुछ समय से केन्द्र और कॉलेजियम आमने सामने हैं. केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान भी काफी चर्चा में रहे है.