18 अक्टूबर के दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक पिता की हैबियस कॉर्पस याचिका को बंद कर दिया है. पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के जरिए अपनी दोनों बेटियों को हाजिर करने की मांग की थी. मांग से इंकार करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि दोनों बेटियां अपनी इच्छा से ईशा योग आश्रम में रह रही हैं (Supreme Court Dismisses Father’s habeous corpus plea Over Daughters at Isha Yoga Centre). सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में ये भी कहा कि दोनों व्यस्क है और प्रत्यक्षीकरण याचिका उद्देश्य पूरा हो गया है, इसलिए मामले में मद्रास हाईकोर्ट को भी किसी तरह के निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है. बता दें कि मामले में सद्गुरू की संस्था ईशा फाउंडेशन ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मद्रास हाई कोर्ट ने पुलिस को आश्रम में जांच करने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की. याचिका में पिता ने दावा किया कि उनकी दोनों बेटियों को ईशा केन्द्र में जबरदस्ती बंद करके रखा गया है. अदालत ने इन आरोपों से इंकार किया और मामले की सुनवाई को बंद करते हुए कहा कि याचिका का उद्देश्य पूरा हो गया है.
बहस के दौरान सीजेआई ने मौखिक तौर पर कहा कि इस सुनवाई का उद्देश्य लोगों और संस्थाओं को बदनाम करने का नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया दोनों बच्चियां व्यस्क (18 वर्ष से ऊपर) हैं और वे अपनी इच्छा से ईशा योग केन्द्र में रह रही हैं.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पता चला कि साध्वी के पिता पिता आजीवन उपवास पर हैं, तो उन्होंने पिता से कहा कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, उनके लाइफ को कंट्रोल करने की जगह उनका विश्वास जीतना चाहिए. दूसरी बात वे व्यस्क हैं, हम उन्हें जबरदस्ती मिलने का आदेश नहीं दे सकते हैं.
ईशा केन्द्र पर दोनों बेटियों को जबरदस्ती रखने का आरोप लगाते हुए पिता ने मद्रास हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी. मद्रास हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा ईशा योग केन्द्र में जांच का आदेश दिया. मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को ईशा केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तब सुप्रीम कोर्ट योग में पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाते हुए याचिका अपने ट्रांसफर कर ली. अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को बंद करने का निर्देश दिया.