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राज्यों के पास 'औद्योगिक अल्कोहल' को रेगुलेट करने का पूर्ण अधिकार, SC ने 'सात जजों की पीठ' का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने आठ एक के बहुमत से सात जजों की बेंच का फैसला पलटते हुए कहा कि

औद्योगिक अल्कोहल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (पिक क्रेडिट Freepik)

Written by Satyam Kumar |Updated : October 23, 2024 1:05 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आठ अनुपात एक के बहुमत से पारित अपने फैसले में सात न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय पलटते हुए बुधवार को कहा कि राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण और आपूर्ति करने का नियामक अधिकार है. वर्ष 1997 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था कि औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक अधिकार केंद्र के पास है. 2010 में यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया था. नौ जजों की संवैधानिक पीठ में  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं.

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई. चंद्रचूड़ और सात अन्य न्यायाधीशों ने व्यवस्था दी कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति का अभाव है. नौ सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने बहुमत के इस फैसले से असहमति जताई. औद्योगिक अल्कोहल मानव उपयोग के लिए नहीं होता है. संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि आठ, राज्यों को ‘‘मादक शराब’’ के निर्माण, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने का अधिकार देती है. वहीं संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में उन उद्योगों का उल्लेख है जिनके नियंत्रण को ‘‘संसद ने कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया है’’ सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों की नौ सदस्यीय संविधान पीठ सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा राज्य सरकारों के खिलाफ फैसला सुनाए जाने के बाद दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

  1. क्या 'औद्योगिक शराब' पर राज्य सरकार का नियंत्रण हो सकता है?

नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि औद्योगिक एल्कोहल को डिंक्र करने या इंसानों के उपयोग के लिए नहीं है. पीठ ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 8, राज्यों को मादक मदिरा के निर्माण, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने के अधिकार देती है. साथ ही उद्योगों को लेकर केंद्र सरकार को अधिकार, उद्योगों की सूची संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में दी गई है.

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2. क्या औद्योगिक शराब को नशीली शराब की श्रेणी में रखा जा सकता है?

नौ जजों की पीठ ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 8 में 'मादक शराब' में औद्योगिक शराब शामिल है. पीठ ने जोर देकर कहा कि गैर-उपभोग्य शराब को मादक शराब की श्रेणी से बाहर करने के लिए संकीर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसमें अल्कोहल युक्त कोई भी तरल शामिल होना चाहिए जिसका संभावित रूप से मानव उपभोग के लिए उपयोग या दुरुपयोग किया जा सकता है.

चीफ जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि मादक का अर्थ जहरीला भी हो सकता है, जो यह दर्शाता है कि पारंपरिक रूप से शराब के रूप में नहीं देखी जाने वाली शराब अभी भी सूची 2 की प्रविष्टि 8 के अनुसार मादक शराब के अंतर्गत आ सकती है. बहुमत ने जनहित को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह शब्द उन सभी मादक पदार्थों को शामिल करता है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं, न कि केवल वे जिन्हें पीने योग्य माना जाता है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस पर अपनी अलग राय रखी है. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए कहा कि औद्योगिक शराब का तात्पर्य गैर-उपभोग्य शराब से है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नशीली शराब शब्द का गलत अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि औद्योगिक शराब, संभावित दुरुपयोग के बावजूद, राज्यों द्वारा विनियमन के लिए सूची 2 की प्रविष्टि 8 के अंतर्गत नहीं आती है, क्योंकि इसका प्राथमिक उपयोग विनिर्माण के लिए है, मानव उपभोग के लिए नहीं.

जस्टिस नागरत्ना के असहमति जताने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने 8:1 के बहुमत से सात जजों की पीठ के फैसले को बदल दिया है. सात जजों की पीठ ने राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को रेगुलेट करने की शक्ति होने से असहमति जताई थी.