नई दिल्ली: केंद्र ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) को बताया कि 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 53 बाघ अभयारण्य में अब अनुमानित बाघों की संख्या 2,967 है. 2017 में एडवोकेट अनुपम त्रिपाठी द्वारा दायर एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय सुनवाई की और मामले को मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि अनुपम त्रिपाठी मौजूद नहीं थे.
इस याचिका में लुप्तप्राय (endangered) बाघों को बचाने की मांग की गई थी, जिनकी संख्या देश भर में घट रही है. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच को बताया कि बाघों के संरक्षण और उनकी आबादी बढ़ाने के लिए काफी काम किया गया है.
पीठ ने एएसजी ऐश्वर्या भाटी को सुना और कहा कि 2018 की जनगणना के अनुसार, भारत में 53 बाघ अभयारण्यों में लगभग बाघों की संख्या बढ़ कर 2,967 हो गई है. यह संख्या वैश्विक बाघ संख्या का 70 प्रतिशत है और यह आंकड़े बाघों की वृद्धि की ओर इशारा करते हैं. पीठ ने न्याय के हित में, याचिकाकर्ता को अवसर देने के लिए, सुनवाई को 3 मार्च तक स्थगित कर दिया.
शीर्ष अदालत ने 2017 में पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Environment), राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Wildlife Board) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) को उस याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें बाघ अभ्यारण्य के पास रहने वाले लोगों को स्थानांतरित करने की भी मांग की गई थी ताकि बाघों को लोगों द्वारा मारे जाने से बचाया जा सके.
इस याचिका में कहा गया था कि बाघ या तो स्थानीय लोगों या अधिकारियों द्वारा जहर देकर मार दिया जाता है या वन रक्षकों द्वारा गोली मारकर या अवैध शिकार द्वारा बाघ मारे जा रहे हैं.