नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code) की धाराएं 19, 20 और 21 न्यायाधीश, न्यायालय (Court of Justice) और लोक सेवक को इस अधिनियम के संदर्भ में परिभाषित करती है. आईए जानते हैं IPC द्वारा दी गई व्याख्या को.
IPC की धारा 19
IPC की धारा 19 "न्यायाधीश" शब्द को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जिसे न केवल एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है, बल्कि उसे भी जो कानूनी कार्यवाही में निर्णय देने के लिए कानूनी अधिकारी है या फिर ऐसे व्यक्तियों का एक निकाय है जो कानून द्वारा निर्णय देने के लिए सशक्त है.
यह धारा आगे उदाहरण देकर स्पष्ट करती है की एक कलेक्टर जो 1859 का बंगाल किराया अधिनियम के तहत एक मामले की सुनवाई करता है या जब मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र में एक मामले की सुनवाई करता है या एक पंचायत का सदस्य कानून द्वारा दी गई शक्तियों के अनुसार मामले की सुनवाई करता है, तो उन्हें भी इस अधिनियम के अंतर्गत भी न्यायाधीश माना जाएगा.
IPC की धारा 20
IPC की धारा 20 “न्यायालय” (Court of Justice) शब्द को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जिसे न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है और कानूनी रूप से न्यायिक निर्णय देने के लिए सशक्त होता है. न्यायालय में न केवल एक नियुक्त न्यायाधीश शामिल है बल्कि न्यायाधीशों का एक निकाय भी शामिल है जो न्यायिक रूप से कार्य करता है.
धारा 19 और धारा 20 में क्या अंतर है?
IPC की धारा 19 और धारा 20 के बीच प्रमुख अंतर यह है कि धारा 19 उन लोगों के बारे में बात करती है जिन्हें न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है और इसमें उन लोगों को भी शामिल किया गया है जिन्हें न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में न्यायिक रूप से भी कार्य करता है. जैस एक जिला कलेक्टर, जिसे न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है, लेकिन रेवेन्यू से जुड़े मामलो और जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के मामले में वह जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका भी निभाता है.
जबकि धारा 20 के तहत केवल उन लोगों को न्यायालय के रूप में परिभाषित किया गया है जिन्हें न्यायाधीश के रूप में नियुक्त या नामित किया गया है. जैसे एक जिला अदालत में नियुक्त एसीजेएम से लेकर जिला एवं सत्र न्यायाधीश हो, या किसी हाईकोर्ट में नियुक्त जज या देश की सर्वोच्च अदालत में नियुक्त किए गए जज हो. इन सभी को IPC की धारा 20 “न्यायालय” (Court of Justice) में शामिल है.
IPC की धारा 21
यह धारा एक लोकसेवक को परभाषित करती है. लोकसेवक जिसे आम जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया गया है. और जिसका अपने पद के अनुसार एक विशेष कर्तव्य या कार्य है. IPC की धारा 21 के अनुसार, हर व्यक्ति इस अधिनियम के तहत एक लोक सेवक है जो इन श्रेणियों के अंतर्गत आते है:
भारतीय सेना या वायु सेना या नौसेना का वह प्रत्येक अधिकारी जो एक ऐसी रैंक पर है जिसे एक आयोग द्वारा दिया गया है. (Commissioned Officer)
सभी न्यायाधीश और न्यायालय (Court of Justice) के प्रत्येक अधिकारी जिसमें न केवल वे लोग शामिल हैं जिन्हें न्यायिक निर्णय देने के लिए द्वारा नियुक्त किया जाता है बल्कि वे सभी भी शामिल हैं जो न्यायालय में और न्यायालय के लिए काम करते हैं.
कोर्ट जूरी सदस्य( Juryman), या पंचायत का कोई सदस्य जो न्यायालय (Court of Justice) या कोई लोक सेवक की सहायता कर रहा हो.
सभी मध्यस्थ या ऐसे व्यक्ति जिसको न्यायालय या किसी सक्षम लोक प्राधिकरण द्वारा किसी मामले में निर्णय सुनने का आदेश मिला हो.
सभी व्यक्ति जो किसी ऐसे पद पर नियुक्त किए जाते है जिससे उस पद की शक्ति के द्वारा वह किसी व्यक्ति को कारावास में डालने या रखने का अधिकार रखते है.
सरकारी विभाग के अधिकारी भी लोकसेवक
सरकार के ऐसे सभी अधिकारी, जिसका कर्तव्य है कि वह अपराध को रोके या अपराध के बारे में जानकारी दे या अपराधियों को कानून के सन्दर्भ में लाते हुए इन्साफ करे या जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करता है
सभी व्यक्ति जो नियुक्तित है और वह चुनाव संचालन के सन्दर्भ में काम करते है
कोई व्यक्ति जो सरकार के लिए काम कर रहा है और सरकार द्वारा उसे उसके काम के लिए भुगतान किया जाता है
कोई भी व्यक्ति जो संसद के अधिनियम से पारित किए हुए स्थापित कंपनी के लिए काम करता है या वह जिसे उस कंपनी द्वारा भुगतान किया जा रहा है.
इसके अलावा इस धारा के अनुसार, सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने या न होने के बावजूद, ऊपर वर्णित सभी व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत लोक सेवक माना जाएगा.