नई दिल्ली, महिलाओं के साथ उत्पीड़न के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया हैं कि महिला के साथ किया गया उत्पीड़न आईपीसी के तहत अपराध माना जाएगा, भले ही महिला का उत्पीड़न किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया गया हो.
मद्रास हाईकोर्ट की जज जस्टिस आर एन मंजूला ने ये महत्वपूर्ण व्यवस्था महिला उत्पीड़न के मामले में आरोपी एम आर श्रीवरामकृष्ण की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दी हैं. इसके साथ ही पीठ ने श्रीवरामकृष्ण की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट Metropolitan Magistrate, Additional Mahila Court, Egmore, Chennai को अगले तीन माह में केस की ट्रायल पूर्ण करने के आदेश दिए हैं.
मुकदमें के अनुसार याचिकाकर्ता आरोपी एम आर श्रीवरामकृष्ण और शिकायतकर्ता पड़ोसी और रिश्तेदार थे, और अपने-अपने घरों की ओर जाने वाले रास्ते को लेकर एक दीवानी विवाद पहले ही दायर कर चुके थे.घटना वाले दिन शिकायतकर्ता के घर के सामने आरोपी द्वारा बाइक खड़ी करने को लेकर दोनों में कहासुनी हो गई.
इस मामले से दोनों पक्षों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि आरोपी याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता,उसकी बहन और बीच बचाव करने आए ड्राइवर को धमकाना और मौखिक रूप से गाली देना शुरू कर दिया. यह संपूर्ण वाक्या शिकायतकर्ता पड़ोसी द्वारा आईपैड पर रिकॉर्ड कर लिया गया. जिसे अदालत में पेश किया गया.
शिकायत पर याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 341, 294(b), 323, 506(i) और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम 2002 की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया.इस तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 में दोषी घोषित होने पर किसी भी व्यक्ति को तीन साल तक के कारावास और कम से कम एक हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया जा सकता हैं.आरोपी ने इस पूरे मामले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की
आरोपी की ओर से हाईकोर्ट में कहा गया कि उसके खिलाफ तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता. क्योंकि इस अधिनियम के तहत अपराध तय करने और दंडित करने के लिए अपराध का सार्वजनिक स्थान पर घटित होना आवश्यक हैं. जबकि उसके मामले में घटना शिकायतकर्ता के घर के परिसर के भीतर हुई थी, इसलिए इसे घर के भीतर हुआ माना जाना चाहिए न कि बाहर सार्वजनिक स्थान पर.
शिकायतकर्ता की और से तर्क दिया गया कि 2002 के इस अधिनियम की धारा 4 में सार्वजनिक स्थानों जैसे किसी शैक्षणिक संस्थान, मंदिर या पूजा के स्थान, बस स्टॉप, सड़क, रेलवे स्टेशन, सिनेमा थियेटर, पार्क, समुद्र तट, त्योहार की जगह, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट, सार्वजनिक स्थान, वाहन या जहाज या किसी अन्य स्थान पर या उसके भीतर महिला का उत्पीड़न किया जाता है ऐसी स्थिति में ही इसे अपराध माना गया हैं.
तमिलनाडू सरकार के साथ साथ शिकायतकर्ता ने भी हाईकोर्ट में याचिका का विरोध किया और कहा कि तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम 2020 का उद्देश्य राज्य में किसी भी हाल में महिलाओं के साथ उत्पीड़न को रोकना है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता चाहिए कि अपराध कहाँ हुआ था.
शिकायतकर्ता की ओर से बशीर अहमद और अन्य बनाम राज्य सरकार फैसले की नज़ीर पेश करते हुए कहा गया कि एक महिला के खिलाफ अपराध केवल अपराध है और वह स्थान या अन्य किसी कारण से अलग नहीं माना जा सकता. शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया कि घटना एक सामान्य रास्ते पर हुई थी, न कि घर के अंदर.
सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद जस्टिस आर एन मंजूला ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 "सार्वजनिक स्थान" शब्द की परिभाषा इस तथ्य को अस्पष्ट नहीं कर सकती है कि कहीं भी यौन उत्पीड़न अपने आप में एक अपराध हैं. जहां घटना हुई थी, उस जगह की सही पहचान करना संबंधित अदालत द्वारा गुण-दोष के आधार पर तय किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि इसके बावजूद इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि महिला के साथ उत्पीड़न हुआ हैं. महिला के साथ किया गया उत्पीड़न आईपीसी के तहत अपराध माना जाएगा, भले ही महिला का उत्पीड़न किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं कियाा गया हो.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी की ओर से पेश कि गयी याचिका को खारिज करने के आदेश दिए.