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नौकरी में प्रमोशन की मांग संवैधानिक अधिकार के तौर पर नहीं कर सकते, सुप्रीम कोर्ट की सरकारी कर्मचारियों को दो टूक

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी प्रमोशन (Promotion) का दावा अधिकार के तौर पर नहीं कर सकते हैं. प्रमोशन देने को लेकर विचार करने की जिम्मेदारी कार्यपालिका (Executive) और विधायिका (Legislature) की है.

सुप्रीम कोर्ट.

Written by Satyam Kumar |Published : June 5, 2024 6:13 PM IST

Promotion In Government Cannot Claim As Right: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात न्यायिक सेवा में प्रमोशन से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी प्रमोशन की मांग अधिकार के तौर पर नहीं कर सकते. अदालत ने स्पष्ट किया प्रमोशन देने को लेकर विचार करने का अधिकार विधायिका और कार्यपालिका को है. इसमें न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) का दायरा भी सीमित है. हम इन मामलों में संविधान के अनुच्छेद 16 (Article 16)  के उल्लंघन होने पर ही विचार कर सकते हैं. बता दें, संविधान का अनुच्छेद 16, समान अवसर के सिद्धांत से जुड़ा है.

प्रमोशन का दावा संवैधानिक अधिकार नहीं: SC

सुप्रीम कोर्ट में, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. बेंच ने स्पष्ट किया कि नौकरी में प्रमोशन संवैधानिक अधिकार है. संविधान में भी इस बात पर कोई जिक्र नहीं है. बेंच ने ये भी कहा कि अगर केन्द्र चाहे तो इसे लेकर कानून बना सकते हैं.

बेंच ने कहा,

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"भारत में सरकारी कर्मचारी को प्रमोशन को अधिकार के तौर पर जताने का अधिकार नहीं है. संविधान प्रमोशनल पोस्ट को भरने के लिए किसी क्राइटेरिया का उल्लेख नहीं करता है."

सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी गुजरात में जिला जज के सेलेक्शन से जुड़े मामले की सुनवाई करने के दौरान सरकारी नौकरी में प्रमोशन के अधिकार पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे लाखों-करोड़ों सरकारी कर्मचारी प्रभावित होंगे.

उक्त टिप्पणी करके सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट की 2023 की सिफारिश को बरकरार रखा है. गुजरात हाईकोर्ट ने मेरिट कम सीनियरटी के सिद्धांत के आधार पर एडीशनल डिस्ट्रिक्ट जज की भर्ती में 65% प्रमोशन कोटे में सिविल जज सीनियर डिवीजन की प्रोन्नति की सिफारिश की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने दो न्यायिक अधिकारियों द्वारा दायर की गई इस याचिका को खारिज कर दी है.