नई दिल्ली, केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए राज्य के सभी पारिवारिक अदालतों को महत्वपूर्ण आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने सभी पारिवारिक न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे विवाद के मामलो में दावेदार के लिए भरण-पोषण के बकाया के रूप में जमा की गई राशि को शीघ्र जारी करें.
जस्टिस ए बदरुद्दीन की एकलपीठ ने यह आदेश उनके समक्ष दायर की गयी एक निगरानी याचिका की सुनवाई करते हुए दिए. पारिवारिक अदालत के एक आदेश को चुनौती देते हुए पुरुष पक्ष MANIKANDAN की ओर से निगरानी याचिका दायर की गयी थी.
सुनवाई के दौरान ही इस मामले में प्रतिवादी महिला की ओर से अधिवक्ता ने अदालत को जानकारी दी कि कोर्ट के आदेश से जमा की गयी भरण पोषण की फैमिली कोर्ट द्वारा उन्हे नहीं दी जा रही हैं.
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी महिला के अधिवक्ता द्वारा दी गयी जानकारी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि पारिवारिक अदालतें ऐसे मामलों में गुजारे भत्ते की बकाया के लिए जमा राशि को शीघ्रता से जारी करने के लिए बाध्य हैं.हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले एक गलत परंपरा है जो दावेदार के हितों का नुकसान करते है.
पीठ ने कहा कि पारिवारिक अदालत का यह उत्तरदायित्व है कि वे बिना समय गवाएं उनके समक्ष जमा की गई राशि को जारी करें, ताकि उनके जीवन यापन में मदद हो सके.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा लगभग सभी पारिवारिक अदालतें इस तरह की प्रक्रिया अपना रही है ऐसे में सभी पारिवारिक अदालतों को आदेश दिया जाता है कि वे अदालत के आदेशों के तहत भरण पोषण के बकाया के रूप में जमा की गई राशि को उनके दावेदारों को जितना जल्दी हो सके वो जारी करें.
एक कदम और आगे बढाते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि इस तरह के मामलों में अदालत दावेदारों से तुरंत संपर्क करे और उन्हे राशि जारी करें.
केरल निवासी Manikandan और Raveena के बीच विवाद होने पर रवीना की और भरण पोषण के वाद दायर किया गया. इस वाद पर पूर्व में अदालत ने एक राशि तय की थी, जिसे कम बताते हुए रवीना की ओर से फैमिली कोर्ट के समक्ष राशि बढाने का प्रार्थना पत्र पेश किया गया.
अदालत के आदेश पर इस मामले में पति Manikandan द्वारा राशि जमा करायी गयी. इस राशि को प्राप्त करने के लिए रवीना की और से अदालत में आवेदन किया गया. जिसका पति की ओर से विरोध करने पर अदालत ने जारी इंकार करने से इंकार कर दिया.
दूसरी तरफ पति की और से निचली अदालत के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में निगरानी याचिका दायर की गयी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान ही प्रतिवादी महिला के भरण पोषण की राशि का मामला सामने आया.