नई दिल्ली: राजधानी की एक अदालत ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में सबूत के अभाव में तीन लोगों को बरी कर दिया है और कहा है कि संभावना सबूत नहीं बन सकती. दिनेश यादव उर्फ माइकल, संदीप उर्फ मोगली और टिंकू के खिलाफ गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया था.
भागीरथी विहार स्थित परिसरों में तोड़-फोड़ के संबंध में इरफान और आकिल सैफी की दो शिकायतों पर केस दर्ज किया गया था.
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला (Additional Sessions Judge (ASJ) Pulastya Pramachala) ने यह कहते हुए आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया कि पीड़ित घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे और उनका यह दावा कि घटना के लिए दंगाइयों की भीड़ जिम्मेदार थी, केवल अफवाह पर आधारित है.
उन्होंने कहा, इन गवाहों ने कहा कि उन्हें कुछ व्यक्तियों द्वारा उनके संबंधित स्थानों पर तोड़फोड़ और आगजनी के बारे में सूचित किया गया था. उन्होंने उन मुखबिरों के विवरण का खुलासा नहीं किया और न ही आईओ ने उनके विवरणों का पता लगाया.
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक प्रतिवादी की पहचान गवाह के विशेष लोक अभियोजक की जिरह के दौरान ऐसा करने के लिए उसका नेतृत्व करने पर आधारित थी.
अदालत ने कहा, हालांकि जिन प्रासंगिक तथ्यों के संबंध में इस गवाह से एलडी स्पेशल पीपी द्वारा जिरह किया गया था, इस गवाह से उसकी मुख्य परीक्षा के दौरान बिल्कुल भी नहीं पूछा गया था. उन तथ्यों पर इस गवाह से कोई जवाब मांगे बिना, उसने एलडी स्पेशल पीपी द्वारा सीधे सुझाव दिए गए थे, जो एक गलत प्रथा है. इस तरह के सबूतों पर अदालत द्वारा भरोसा नहीं किया जा सकता है.
कोर्ट ने उन्हें इस मामले में लगे सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं होते हैं.