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सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ सुनेगी दाउदी बोहरा समुदाय का मामला, संविधान पीठ ने किया रेफर

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने आज इस मामले पर फैसला सुनाते हुए इसे वृहद पीठ को भेजने का फैसला सुनाया. पीठ को यह फैसला करना था कि क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा संविधान के तहत 'संरक्षित' है या नहीं.

Written by Nizam Kantaliya |Published : February 10, 2023 6:08 AM IST

नई दिल्ली: दाऊदी बोहरा समुदाय में लागू बहिष्कार प्रथा संविधान के तहत 'संरक्षित' है या नहीं, इस मामले का फैसला अब सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्य करेगी. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने आज इस मामले पर फैसला सुनाते हुए इसे वृहद पीठ को भेजने का फैसला सुनाया है.

गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के जरिए दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा को चुनोती दी गई है. पीठ को यह फैसला करना था कि क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा संविधान के तहत 'संरक्षित' है या नहीं.

इस प्रथा के जरिए मुस्लिम दाउदी बोहरा समुदाय में नियम न मानने वाले लोगों को समुदाय से बाहर करने की व्यवस्था है.

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बदले कानून से उपजे सवाल

महाराष्ट्र समाजिक बहिष्कार संरक्षण कानून के अस्तित्व में आने के दाऊदी बोहरा की प्रथा को जारी रखने पर सवाल खड़े किए जा रहे थे. इस कानून के जरिए बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 रद्द कर करते हुए उसकी जगह महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार से लोगों का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2016 लागू किया गया.

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ शुक्रवार को इस पर अपना फैसला सुनाएगी कि क्या दाउदी बोहरा समुदाय में पूर्व-संचार की प्रथा के खिलाफ याचिका को एक बड़ी पीठ के पास भेजने की जरूरत है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को कल अपना फैसला सुनाना है.

9 सदस्य पीठ का अनुरोध

जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने इस मामले में सभी पक्षकारों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया था कि इस मामले को भी नौ न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सबरीमाला मामले के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए.

जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने भी मामले में अदालत से सबरीमाला मामले में नौ जजों की बेंच के फैसले का इंतजार करने या मौजूदा मामले को नौ जजों की बेंच को रेफर (refer) करने का अनुरोध किया था.

पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य पीठ से यह अनुरोध किया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1962 में 5 सदस्य पीठ द्वारा दिए गए फैसले पुनर्विचार 5 सदस्य पीठ द्वारा ही नहीं किया जा सकता. इस मामले में सुनवाई के दौरान एक पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन ने दलील दी थी कि मामले को तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए, जब तक कि 9 जजों की पीठ अपना फैसला नहीं दे देती. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

गौरतलब है कि केरल में सबरीमाला पहाड़ी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के संबंध में सबरीमाला मामले में नौ न्यायाधीशों की बेंच का फैसला सुरक्षित है. यह पीठ धार्मिक प्रथाओं के संबंध में महिलाओं के अधिकारों से जुड़े तीन अन्य मामलों पर भी विचार कर रही है.

क्या कहा पीठ ने

पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उसने दो कारणों से इस मामले को पुनर्विचार के लिए 9 सदस्य पीठ को भेजने का निर्णय लिया है.

पीठ के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 26 (बी) के तहत अधिकारों को संतुलित करने के संबंध में एक परीक्षण की आवश्यक्ता है जो सभी धार्मिक संप्रदायों को धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है.

पीठ ने दूसरे कारण के रूप में पूछा है कि क्या संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर कसते समय बहिष्कार की प्रथा को अनुच्छेद 26 (बी) के तहत संरक्षण दिया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि इस मामले से जुड़े दोनो मुद्दे सबरीमाला मामले की समीक्षा के अधीन आते है इसलिए इस मामले को भी 9 जजों की पीठ को रेफर किया जाना चाहिए.

पीठ ने सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ से अनुरोध किया है कि इस मामले को भी 9 जजों की पीठ के समक्ष दायर अन्य मामलो के साथ सूचीबद्ध किया जाए.