Custodial Death Case: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात सरकार से पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी संजीव भट्ट की 1990 के हिरासत में मौत मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब देने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ भट्ट की याचिका पर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है. जनवरी 2024 में, गुजरात उच्च न्यायालय ने एक ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ भट्ट की अपील को खारिज कर दिया और हत्या, स्वेच्छा से चोट पहुंचाने और आपराधिक धमकी से निपटने वाले भारतीय दंड संहिता के विभिन्न मामलों में उनकी सजा को बरकरार रखा था. भट्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है. गुजरात की एक अदालत ने जून 2019 में पूर्व संजीव भट्ट को 1990 के हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट पर आरोप लगे है. उन्होंने एक वकील के खिलाफ अफीम रखने का झूठा केस बनाया है. इस मामले में उन्हें साल, 2018 में गिरफ्तार किया गया था.
घटना 1996 की है, संजीव भट्ट पालनपुर के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस थे. गुजरात के बनासकाठां पुलिस ने एक राजस्थान के एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को गिरफ्तार किया. वकील पर ड्रग रखने के आरोप लगाए. मामले में वकील साहब को रिहाई मिल गई. लेकिन झूठे केस बनाने का मुकदमा पुलिस के ऊपर लगाया.
एडिशनल सेशन जज एन ठक्कर ने भट्ट को दोषी पाया. संजीव भट्ट के खिलाफ नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम (NDPS Act) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी पाते हुए ₹4.56 लाख जुर्माने के साथ 20 साल जेल की सजा सुनाई.
इसके साथ ही गलत मुकदमा दर्ज करने के लिए अतिरिक्त दो साल जेल और सभी गलत चार्जेस के लिए 5000 रूपया के हिसाब से जुर्माना भरने के आदेश दिए हैं.