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सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6ए की वैधता सुप्रीम कोर्ट ने रखी बरकरार, 4:1 के फैसले में जस्टिस पारदीवाला ने जताई असहमति

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि असम समझौता अवैध प्रवास के लिए एक राजनीतिक समाधान के रूप में कार्य करता है, जबकि धारा 6ए एक विधायी ढांचा प्रदान करती है. सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 की बहुमत से नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा है,

बंग्लादेशी घुसपैठिए और सुप्रीम कोर्ट (पिक क्रेडिट ANI)

Written by Satyam Kumar |Updated : October 17, 2024 2:25 PM IST

17 अक्टूबर के दिन यानि आज सुप्रीम कोर्ट ने असम समझौते को मान्यता देते हुए नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 की बहुमत से फैसला सुनाया, पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस फैसले को असंवैधानिक घोषित करने का फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस ने 6 A में भारतीय नागरिकता में आवेदन के लिए दी गई 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट को भी सही ठहराया है. सीजेआई ने कहा कि उस वक़्त पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले लोगों की तादाद आजादी के बाद भारत आने वाले लोगों से कहीं ज़्यादा है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अर्थ होगा कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिकता के लायक है. जिनको इसके तहत नागरिकता मिली है, उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संसद चाहे तो इसे स्थानीय आबादी के हितों की रक्षा के लिए संशोधित भी कर सकती है.

असम समझौते को विधायी ढ़ांचा प्रदान करती है 6A

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है. जबकि जस्टिस पारदीवाला ने धारा 6A को असंवैधानिक करार दिया है. जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता को 4:1 से बरकरार रखा है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास के लिए एक राजनीतिक समाधान के रूप में कार्य करता है, जबकि धारा 6ए एक विधायी ढांचा प्रदान करती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान को संशोधित करने की क्षमता संसद के पास है, वे स्थानीय आबादी के हितों की रक्षा   के लिए इसे संशोधित कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने असम को अन्य सीमावर्ती राज्यों से अलग करने के निर्णय को तर्कसंगत पाया क्योंकि स्थानीय आबादी में अप्रवासियों का प्रतिशत अधिक है. असम में 40 लाख प्रवासी हैं, जो कि पश्चिम बंगाल में 57 लाख प्रवासियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है. और अप्रवासियों की ये संख्या छोटा राज्य होने के चलते असम के लिए भूभागीय चुनौतियों पैदा करती है.

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नागरिकता के लिए 25 मार्च 1971 का कट-ऑफ डेट सही

सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तिथि की तर्कसंगतता को बरकरार रखा, जो बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की समाप्ति का प्रतीक है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया इस डेट को युद्ध के पहलु से देखा जाना चाहिए. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 6A न तो अधिक समावेशी है और न ही कम समावेशी है,जो कानूनी ढांचे के भीतर इसकी उपयुक्तता को पुष्ट करता है

याचिकाकर्ता के तर्कों से CJI ने जताई सहमति

सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि किसी राज्य में कई जातीय समूहों का अस्तित्व संविधान के अनुच्छेद 29(1) के तहत भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. याचिकाकर्ताओं को यह प्रदर्शित करना होगा कि एक जातीय समूह की अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने की क्षमता दूसरे समूह की उपस्थिति से प्रभावित होती है.

6A से भाईचारे के सिद्धांत को चुनौती नहीं

जस्टिस सूर्यकांत ने जस्टिस सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा के साथ मिलकर याचिकाकर्ताओं के इस दावे को खारिज कर दिया कि धारा 6ए संविधान की प्रस्तावना में भाईचारे के सिद्धांत का उल्लंघन करती है. जस्टिस कांत ने इस बात पर जोर दिया कि भाईचारे की व्याख्या संकीर्ण रूप से नहीं की जानी चाहिए, उन्होंने सुझाव दिया कि इसमें किसी के पड़ोसी चुनने का अधिकार शामिल नहीं है. यह फैसला सामाजिक सामंजस्य और समुदाय की व्यापक समझ को उजागर करता है.

जस्टिस सूर्यकांत ने 6ए को इन तीन बिंदुओं में बताया

  1. असम में 1 जनवरी 1966 से पहले प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिक माना जाता है.
  2. 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले प्रवासी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, यदि वे पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं.
  3. 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को अवैध प्रवासी घोषित किया गया है और इन अवैध प्रवासियों की पहचान कर निर्वासन की प्रक्रिया लागू की जाएगी.

जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले में सर्बानंद सोनोवाल मामले में अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन के लिए जारी निर्देशों को लागू करने को कहा है. जस्टिस ने फैसले में कहा कि अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए निर्धारित कानूनी मशीनरी और ट्रिब्यूनल पर्याप्त नहीं हैं. साथ ही इन मामलों को कार्यकारी प्राधिकरणों की इच्छाओं पर इस मामले का कार्यान्वयन नहीं छोड़ा जा सकता है, इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरंतर निगरानी की आवश्यकता है, जिसके लिए मामलों को एक बेंच के समक्ष रखा जाएगा.

क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान( अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है. राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है. सरकार ने नागरिकता क़ानून में 6 A जोड़कर अवैध घुसपैठ को क़ानूनी मंजूरी दे दी. याचिकाओं 6 A के असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की  है.