नई दिल्ली: केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता द्वारा हमारे देश के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष मंगलवार को बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 के कई प्रावधानों को रद्द करने के फैसले के संबंध में दायर की गई समीक्षा याचिका का उल्लेख किया, जिसके बाद CJI ने आश्वासन दिया है कि वह इस याचिका को जल्द ही सूचीबद्ध करेंगे.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी अनुरोध किया है कि इस याचिका की सुनवाई खुली अदालत (Open Court) में की जाए. केंद्र ने कहा कि इस फैसले के कारण बेनामी अधिनियम के कुछ प्रावधानों के संदर्भ में कई आदेश पारित किए जा रहे हैं, जबकि 23 अगस्त 2022 को जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था, उसमें बेनामी अधिनियम के कुछ प्रावधानों, जिन्हें रद्द कर दिया गया है, उनको चुनौती भी नहीं दी गई थी.
पिछले वर्ष 23 अगस्त को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन वी रमना की अगुवाई वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले से बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया था.
इस फैसले में कहा गया था कि 1988 के असंशोधित अधिनियम की धारा 3(2) स्पष्ट रूप से मनमाना होने के कारण असंवैधानिक है. धारा 3(2) के तहत बेनामी लेन-देन को अपराध की श्रेणी में रखा गया था, जिसके लिए तीन साल की अधिकतम जेल की सजा या जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती थी. इसी के साथ 2016 के संशोधित अधिनियम की धारा 3(2) को भी संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन करने के लिए असंवैधानिक ठहराया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया था कि 1988 के अधिनियम की धारा 5 भी अस्पष्ट और मनमाना है, इसलिए वह भी असंवैधानिक है. जिसके कारण संबंधित अधिकारी 2016 के संशोधन अधिनियम के लागू होने से पहले यानि 25 अक्टूबर, 2016 से पहले किए गए बेनामी लेन-देन के संबंध में कोई भी आपराधिक मुकदमा या जब्ती की कार्रवाई ना शुरू कर सकती है और ना ही किसी कार्रवाई को जारी रख सकती है.