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क्या डॉक्टरों की लापरवाही पर उनके खिलाफ हो सकता मुकदमा दर्ज ?

चिकित्सा में आपराधिक लापरवाही केवल उन मामलों में उत्पन्न होती है जहां डॉक्टर से "घोर" लापरवाही हुई हो. घोर लापरवाही के आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कियाा जा सकता है तो वही लापरवाही पर मरीज को हुए नुकसान को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत मुआवजे के लिए भी मुकदमा दायर किया जा सकता है.

Written by nizamuddin kantaliya |Published : December 15, 2022 6:39 AM IST

हमारे देश में चिकित्सा को सबसे बड़ा परोपकारी पेशा माना गया है. जिसके चलते चिकित्सा कार्य और उसमें शामिल लोगों को हमेशा ही बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है, यहां तक कि डॉक्टरों को धरती का भगवान तक कहा जाता है.

सबसे ज्यादा सम्मानित पेशा

एक डॉक्टर पर लोग आंख बंद कर भरोसा करते है डॉक्टर को एक मरीज वो जानकारी भी दे देता है जो अपने सबसे करीब दोस्तों और रिश्तेदारों को भी नहीं बता पाता है. तो वही ऑपरेशन से लेकर उपचार के दौरान एक डॉक्टर एक मरीज के जीवन का अधिकारी तक होता है.

चिकित्सा के पेश में डॉक्टरों से उम्मीद की जाती है कि वे कोई गलती नहीं करें. यहां तक कि एक छोटी सी गलती भी मरीज के जीवन के लिए हानिकारक हो सकती है, और उसके जीवन को समाप्त कर सकती हैं.

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हमारे देश में जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सा से जुड़े डॉक्टरों और पेशेवरों की कमी हैं. जिसके चलते इस पेशे से जुड़े लोगों को बहुत तनाव और दबाव से गुजरना पड़ता है, पूरे सप्ताह डॉक्टरों को लगभग 100 से 120 घंटे काम करना पड़ता है. इसके चलते कई बार डॉक्टर खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कई बार अन्य कारणों से भी लापरवाही होती है.

लापरवाही की परिभाषा

एक डॉक्टर की लापरवाही का मतलब यह नहीं है कि डॉक्टरों को हर मरीज को ठीक करना होगा या ऑपरेशन की विफलता को लापरवाही माना जाएगा.केवल जब डॉक्टर अपने देखभाल के कर्तव्य में कमी के चलते किसी मरीज को नुकसान पहुंचाता है, तो इसे लापरवाही माना जाएगा.

मामला दायर करने वाले व्यक्ति को यह स्थापित करना होगा कि डॉक्टर के पास की गयी चिकित्सा के लिए आवश्यक कौशल नहीं था या उसने ​डॉक्टरों की निर्धारित मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया या देखभाल का कर्तव्य नहीं निभाया.

कानून की नजर में

ऐसा बहुत कम होता है कि चिकित्सकीय लापरवाही के लिए डॉक्टरों पर आपराधिक कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि एक डॉक्टर पर लापरवाही का मामला स्थापित करना बहुत मुश्किल होता है कि डॉक्टर की ओर से चिकित्सकीय लापरवाही हुई है.

चिकित्सा पेशे से जुड़े कानून को डॉक्टरों के प्रति समर्थक बनाया गया है. डॉक्टरों से जुड़े कानून तैयार करने वाले निर्माताओं ने इस बात भरोसा किया कि इस पेशे में आना व्यक्ति मानव जीवन की रक्षा के लिए सेवाएं दे रहा है. इसी के चलते अधिकांश कानून चिकित्सकों की रक्षा में खड़े नजर आते है.

चिकित्सा के लिए किए जाने वाले ऑपरेशन और दवाईयों की प्रक्रिया बेहद जटिल हैं और डॉक्टर जो रोगी को बचाने या रोगी की रक्षा करने के लिए अच्छे विश्वास में काम कर रहे हैं या ऐसी परिस्थितियों में जहां आपात स्थिति है और तत्काल निर्णय की आवश्यकता है और ऐसी परिस्थितियों में डॉक्टरों को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे मामलों में उनके खिलाफ आईपीसी के तहत मुकदमा भी नहीं चलाया जाएगा.

घोर लापरवाही का कारण

चिकित्सा में आपराधिक लापरवाही केवल उन मामलों में उत्पन्न होती है जहां डॉक्टर से "घोर" लापरवाही हुई हो. एक डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए केवल देखभाल के कर्तव्य की कमी पर्याप्त नहीं है. मुकदमे के लिए एक ऐसी लापरवाही बताया जाना जरूरी है जिसके चलते हुआ नुकसान मुआवजे से परे है और उस लापरवाही का असर उस व्यक्ति के भविष्य पर पड़ेगा.

इससे भी अधिक यह साबित करने की जरूरत है कि डॉक्टर का कार्य सामान्य से बाहर था और सामान्य परिस्थितियों में या किसी अन्य विवेकपूर्ण डॉक्टर द्वारा सामान्य घटनाओं में नहीं किया गया होगा. मुकदमे के लिए किसी मरीज की मृत्यु, चोट लगने या उसके साथ बेहद क्रूर घटना होने के लिए डॉक्टर की लापरवाही का सीधा संबंध होना जरूरी है.

डॉक्टरों पर मुकदमा कब

एक डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक मामला तब दर्ज हो सकता है जब उसके द्वारा बड़ी लापरवाही से किये गए कार्य से मरीज की जान को खतरा पैदा हुआ हो. या एक डॉक्टर जब जानबूझकर ऐसा कार्य करता है जिससे मरीज में संक्रमण फैला और उससे मरीज की मृत्यु हो जाती है

डॉक्टर के लापरवाही के कारण किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंची हो या लापरवाही के कारण मौत होने की स्थिति में मुकदमा दर्ज किया जा सकता है.

डॉक्टरों की लापरवाही से जुड़े कानून और सजा

IPC  की धारा 270 — इस धारा के तहत एक डॉक्टर या किसी भी व्यक्ति को आपराधिक रूप से जिम्मेदार तब माना जाएगा जब वह यह जानते हुए कोई कार्य करता है कि इसका परिणाम एक संक्रमण होगा जिसका परिणाम से मरीज की मृत्यु हो सकती है.

सजा— इस धारा के तहत एक दोषी डॉक्टर को दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों ही सजा सुनाई जा सकती है.

IPC  की धारा 336— इस धारा के अनुसार एक डॉक्टर या किसी अन्य व्यक्ति की लापरवाही के चलते अगर किसी मरीज को खतरे में डालता है तो वह इस अपराध का दोषी होगा.

सजा— इस धारा के तहत दोषी डॉक्टर को 3 महीने की जेल, जुर्माना या दोनों ही सजा दी जा सकती है.

IPC  की धारा 338— एक डॉक्टर जब मरीज की देखभाल करने के कर्तव्य से जुड़ा होने पर लापरवाही से काम करके गंभीर चोट या बहुत गंभीर चोट का कारण बनता है, तो वह इस अपराध धारा के तहत दोषी होता है.

सजा— इस धारा में दोषी पाए जाने पर एक डॉक्टर को दो साल तक की जेल या दो हजार रुपए जुर्माना या दोनों सजाए हो सकती है.

IPC की धारा 304 — एक डॉक्टर जब अपनी ड्यूटी के दौरान लापरवाही या जल्दबाजी के दौरान मृत्यु का अपराधी बनता है, तो उसके खिलाफ की IPC की धारा 304 जो की गैर इरादतन हत्या से जुड़ी है के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.

सजा— इस धारा के तहत डॉक्टर के दोषी पाए जाने पर उसे 2 साल की जेल हो सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है अदालत दोनों सजा भी सुना सकती है.

मुआवजे का प्रावधान

एक डॉक्टर की लापरवाही पर मरीज को हुए नुकसान को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत मामला मुआवजे के लिए मुकदमा दायर किया जा सकता है.उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) के अनुसार मरीज उपभोक्ता की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं. अस्पताल और डॉक्टर को सेवा के बदले भुगतान के मामले में मरीज को उपभोक्ता माना गया है.

इस अधिनियम के तहत गैर-आपराधिक मामलों के मामले में डॉक्टर को उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा, बल्कि मरीज को मुआवजे के तौर पर पैसे का भुगतान करना होगा. अगर मरीज और डॉक्टर के बीच अस्पताल एक मध्यस्थ और वह सेवाओं के बदले फीस ले रहा है तो ​ऐसी स्थिति में अस्पतालों को भी लापरवाही पर मुआवजे का भुगतान करना होगा.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(11) के तहत उपभोक्ता अदालतों में मामला दायर कर सकते है. यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि जिन सेवाओं को व्यक्ति जानता है कि वे खतरनाक हो सकती हैं या उचित परिश्रम से यह कहा जा सकता है कि यह उपभोक्ता को प्रभावित कर सकता है, उन्हें उत्तरदायी होना चाहिए.

लापरवाही से मौत होने या मरीज को हुए नुकसान के मुकदमों में उपभोक्ता अदालतें मरीजों या उनके परिजनों को उचित मुआवजा देने का आदेश देती है. कई बार यह मुआवजा करोड़ो में होता है.