नई दिल्ली: कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) ने मंगलवार को दो पुलिस अधिकारियों के निलंबन का आदेश दिया है जिन्होंने एक नाबालिग रेप पीड़िता की पहचान का खुलासा कर दिया था और पीड़िता के दोषमुक्ति वाले बयान के बाद भी गलत तरह से आरोपी को गिरफ्तार करके रखा।
कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची (Justice Joymalya Bagchi) और न्यायाधीश अजय कुमार गुप्ता (Justice Ajay Kumar Gupta) की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है।
आपको बता दें कि खंडपीठ ने कहा कि 'निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ' (Nipun Saxena Vs Union of India) मामले में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने यह कहा था कि एक यौन शोषण मामले की पीड़िता खासकर एक नाबालिग की पहचान को हर हाल में सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
अदालत का कहना है कि पुलिस अधिकारी वो लोक सेवक माने जाते हैं जिन्हें असुरक्षित और कमजोर नाबालिग पीड़ितों से जुड़े संवेदनशील मामलों में जांच की जिम्मेदारी दी जाती है। ऐसे में इस बारे में उनका जागरूक न होना कि पीड़िता की पहचान सुरक्षित रखी जाती है, हैरान करने वाली बात है।
बता दें कि कथित मामले में पुलिस अधिकारियों ने पीड़िता की तस्वीर को अपनी उस केस डायरी में शामिल किया जिसे न्यायिक कार्यवाही के दौरान अदालत में पेश किया गया था।
अदालत ने नोट किया है कि इस मामले में पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के साथ-साथ पुलिस अधिकारियों ने आरोपी को भी गलत तरह से गिरफ्तार किया है। दरअसल पुलिस अधिकारियों को यह पता था कि 'आपराधिक प्रक्रिया संहिता' (Code of Criminal Procedure) की धारा 161 के तहत पीड़िता ने आरोपी-याचिकाकर्ता को लेकर जो बयान दर्ज किया है वो दोषमुक्ति प्रकृति का है।
इसके बावजूद आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार किया और काफी समय तक कस्टडी में रखा। इसपर अदालत का कहना है कि इस तरह की हरकत एक शख्स के सबसे कीमती अधिकार, उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) का अतिक्रमण करती है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कई मामलों में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि गिरफ़्तारी के अपने अधिकार को पुलिस को बहुत संभालकर इस्तेमाल करना चाहिए।
इसी सबके चलते उच्च न्यायालय ने बिधाननगर पुलिस आयुकताली के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि वो सांतनु सरकार (बगुयती पुलिस स्टेशन के इन्स्पेक्टर-इन चार्ज) और बिस्वजीत दास (मामले के इंवेस्टिगटिंग ऑफिसर) को तुरंत निलमिर करें।
अदालत ने इन दोनों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच के दौरान कर्तव्य में लापरवाही बरतने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि इस निर्देश का पालन किया जाना चाहिए और इसकी रिपोर्ट उनके समक्ष 22 अगस्त, 2023 को सबमिट की जानी चाहिए।