कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम (Chief Justice TS Sivagnanam) ने न्यायिक अधिकारियों से POCSO मामले में और अधिक संवेदनशीलता दिखाने की सलाह ही है.
दक्षिण 24 परगना के बरुईपुर में नए अतिरिक्त सत्र न्यायालय के हाल ही में हुए उद्घाटन समारोह में, चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) को मानव तस्करी (Human Trafficking Cases) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act- POCSO) के तहत आने वाले मामलों के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है..
चीफ जस्टिस के अनुसार, POCSO से जुड़े मामले हाई कोर्ट में जब पहुंचते हैं, तो उनमें से ज्यादातर अपीलों से ट्रायल कोर्ट की ओर से हुए प्रक्रियात्मक खामियों का पता चलता है इसलिए, न्यायिक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया जाए.
चीफ जस्टिस के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि POCSO मामलों के निपटारे को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने अपने निर्णयों के माध्यम से यह निर्धारित किया है कि ऐसे मामलों से निपटने वाले न्यायाधीशों को किस प्रकार उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उनमें कितनी संवेदनशीलता होनी चाहिए.
उन्होंने बताया कि जो न्यायाधीश इस तरह के मामलों को संभालेंगे उनके लिए एक प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करने के लिए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह (Justice Ahsanuddin Amanullah) के नेतृत्व में एक समिति का गठन की गई थी.
चीफ जस्टिस के अनुसार, "इन मामलों में ऐसे गवाह जो कमजोर हैं जिन्हे खतरा हो उनके लिए कमजोर गवाह कक्ष का इस्तेमाल करें. क्योंकि इस तरह के मामलों में सबसे पहला हमला मुकदमे के प्रक्रियात्मक पहलू पर किया जाता है. इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के हालिया फैसलों को ट्रायल कोर्ट के जज देखें और मुकदमे के प्रक्रियात्मक पहलू पर नवीनतम स्थापित कानून से अवगत रहें.''
जानकारी के अनुसार, चीफ जस्टिस ने आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि लगभग 2,700 सिविल मामले और 1,700 से अधिक सत्र मामले लंबित हैं. रिकॉर्ड से पता चला है कि इनमें से कुल 1,032 मामले POCSO से संबंधित हैं.
उन्होंने खुलासा किया कि लंबित मामलों की अधिक संख्या को देखते हुए नई इमारत का निर्माण किया गया था. न्यायिक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी मामला 20 साल से अधिक समय तक पेंडिंग ना रहे. नए बुनियादी ढांचे के साथ, न केवल वादियों को बल्कि अधिवक्ताओं को भी लाभ मिलेगा, क्योंकि अब अधिक मामलों का निपटारा किया जा सकेगा.
उन्होंने यह भी कहा कि "भौतिक फाइलों (Physical Files) को सत्यापित करें क्योंकि ऑनलाइन जो आंकड़े हैं वो सटीक नहीं. महीने में कम से कम दो बार फाइलों को खुद चेक करें और इससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि मामला किस स्तर पर पहुंच गया है. इससे बड़ी संख्या में लंबित मामलों को कम करने में मदद मिलेगी."