नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से शिवसेना को लेकर उद्धव ठाकरे गुट को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना के रूप में मान्यता देने वाले चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है. यानी सुप्रीम कोर्ट से उद्धव गुट को अभी के लिए राहत नहीं मिली है. चुनाव आयोग के फैसले को कोर्ट ने बरकरार रखा है. यानी कि शिवसेना और धनुष बाण दोनों ही शिंदे गुट के पास रहेंगे.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 2 सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने के भी निर्देश दिये है.
चुनाव आयोग ने 17 फरवरी को एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देते हुए उन्हें 'शिवसेना' नाम और अपनी पार्टी के लिए धनुष और तीर के प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति दी है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग का आदेश एक प्रतीक तक ही सीमित है.हम चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने का आदेश पारित नहीं कर सकते. हम एसएलपी पर विचार कर रहे हैं.
पीठ ने इसके साथ ही उद्धव ठाकरे गुट को आगामी उपचुनावों के लिए 'ज्वलंत मशाल' का उपयोग करने की अनुमति दी है. पीठ ने कहा कि चिंचवाड़ और कस्बा पेठ में उपचुनाव के लिए 'शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)' नाम और 'ज्वलंत मशाल' प्रतीक का उपयोग की आजादी है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एकनाथ शिंदे गुट को नोटिस जारी करते हएु दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने के निर्देश भी दिए है.
महाराष्ट में जून 2022 में हुए उलटफेर के बाद शिवसेना दो गुटों में विभाजित हो गया जिसमें एक गुट का नेतृत्व ठाकरे कर रहे है तो वही दूसरे गुट का नेतृत्व एकनाथ शिंदे कर रहे है. शिंदे ने तब 'शिवसेना' नाम और धनुष और तीर के प्रतीक के लिए दावा करते हुए चुनाव आयोग में याचिका दायर की थी.
चुनाव आयोग ने अपने संगठनात्मक विंग के परीक्षण के बजाय अपने निर्णय पर पहुंचने के लिए पार्टी के विधायी विंग की ताकत पर निर्भर था. लेकिन चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि यद्यपि इसने संगठनात्मक विंग के परीक्षण को लागू करने का प्रयास किया था, यह किसी भी संतोषजनक निष्कर्ष पर नहीं आ सका क्योंकि पार्टी का नवीनतम संविधान रिकॉर्ड में नहीं था.
दोनों गुटों की ओर से संगठनात्मक विंग में संख्यात्मक बहुमत के किए गए दावे संतोषजनक नहीं होने पर आयोग ने विधानसभा बहुमत के आधार पर आगे बढा.
ठाकरे गुट के 15 विधायकों के मुकाबले शिंदे गुट के पास 40 विधायक हुए वही लोकसभा में 18 सांसदों में से 13 सांसदों ने शिंदे गुट का साथ दिया, जिसके आधार पर चुनाव आयोग ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे शिवसेना का नाम और धनुष और तीर का प्रतीक बनाए रखने की अनुमति दी।
बुधवार को सुनवाई के दौरान ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि असली शिवसेना कौन सा गुट था, यह निर्धारित करने के लिए "विधायी विंग के परीक्षण" को लागू करने के लिए चुनाव आयोग का फैसला अनुचित है.
सिबल ने कहा कि आयोग ने अपने नियमों से परे जाकर संगठनात्मक बहुमत को दरकिनार करते हुए विधायी विंग के बहुमत के आधार पर निर्णय लिया है जो कि गलत है.
शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने इस मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर आपत्ति जताई और कहा कि ठाकरे गुट को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए.