सुप्रीम कोर्ट 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए बलवंत सिंह राजोआना की उस याचिका पर चार नवंबर को सुनवाई करेगी, जिसमें उसने अपनी दया याचिका पर फैसला लेने में अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का अनुरोध किया है. राजोआना ने याचिका में दावा किया कि उसने लगभग 29 साल जेल में काटे हैं, जिनमें से 17 साल मौत की सजा के रूप में काटे गए हैं. राजोआना का तर्क है कि उसकी मौत की सजा पर अमल करने में और उसकी ओर से दायर दया याचिका पर निर्णय लेने में हुई देरी उसके अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करती है.
पंजाब पुलिस के पूर्व कान्स्टेबल राजोआना की याचिका जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है. शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था. याचिका में राजोआना ने उसकी मौत की सजा पर अमल में और उसकी ओर से दायर दया याचिका पर निर्णय लेने में ‘अत्यधिक देरी’ का हवाला देते हुए केंद्र व पंजाब सरकार को उसकी सजा घटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.
सर्वोच्च न्यायालय में दायर ताजा अर्जी में राजोआना ने कहा है कि उसने कुल मिलाकर लगभग 28 साल और आठ महीने की सजा काट ली है, जिसमें से उसने 17 साल मौत की सजा पाए दोषी के रूप में काटे हैं. राजोआना ने कहा है कि शीर्ष अदालत ने एक साल से अधिक समय पहले सक्षम प्राधिकारी को उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था. याचिका में एक अलग मामले में शीर्ष अदालत के अप्रैल 2023 के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें उसने सभी राज्यों और उपयुक्त प्राधिकारियों को लंबित दया याचिकाओं पर बिना किसी देरी के फैसला करने का निर्देश दिया था. याचिका में कहा गया है कि उपरोक्त निर्देशों के बावजूद याचिकाकर्ता की दया याचिका पर फैसला लंबित रखा गया है.
याचिका में दलील दी गई है कि याचिकाकर्ता की दया याचिका पर फैसला लेने में यह असाधारण और अत्यधिक देरी उन कारणों से हुई, जो उसके नियंत्रण से परे हैं और जिनके लिए वह जिम्मेदार नहीं है, ऐसे में यह (संविधान के) अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि कई मामलों में दया याचिकाओं पर फैसला लंबे समय तक लंबित रहने और दोषियों को जेल में रखे जाने का मुद्दा शीर्ष अदालत के समक्ष विचार के लिए आया है.
चंडीगढ़ में 31 अगस्त 1995 को नागरिक सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में बेअंत सिंह और 16 अन्य लोगों की मौत हो गई थी. एक विशेष अदालत ने जुलाई 2007 में राजोआना को बेअंत सिंह हत्याकांड में मौत की सजा सुनाई थी. राजोआना ने कहा कि मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत उसकी तरफ से एक दया याचिका दायर की थी. पिछले साल तीन मई को शीर्ष अदालत ने राजोआना की मौत की सजा को कम करने से इंकार कर दिया था और कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी दया याचिका पर विचार कर सकते हैं.